fiza Tanvi

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आगाज़ ए ज़िन्दगी

काश वो मेरे जैसा हो...

मैं जब भी अपने रब से दुआ मांगती थी. मैं अल्लाह से दुआ करती थी....

मेरा हमसफर मेरे जैसे हो..
मैं और लड़कियों से बहुत मुख्तलिफ हुँ. आज के ज़माने में हर लड़की को ऐसा शोहर चाहिए होता है.

जो शादी के बाद सिर्फ उस का हो.
शादी के बाद लड़किया उस को सिर्फ अपनी प्रॉपर्टी समझने लगती है.

लेकिन मेरी आरज़ू ये थी.
मेरा हमसफर ऐसा हो जो एक बहन के लिए एक  अच्छा भाई साबित हो 

माँ के लिए अच्छा बेटा.
और भांजी भांजे भतीजी भतीजो के लिया अच्छा चाचा और मामा साबित हो.

मैं शादी के नाम पर किसी के बेटे पर कब्ज़ा नहीं करना चाहती.

बल्कि हिस्सेदारी चाहती थी.
जैसे उन में बहन की हिस्सेदारी है.
माँ की हिस्सेदारी है. उसी तरह मेरी भी एक हिस्सेदारी हो...

हमसफर के मामले में मैंने ऐसे दुआ मांगी है. जैसे चावल से कंकर चुन ने जैसा. इतना ही मुश्किल और उतनी ही एहतियात.
जैसे चिडिया एक एक तिनके से घर बनती है. चुन चुन के वैसे ही.

 लेकिन अल्लाह का बहुत एहसान है मुझ पर जितना अच्छा माँगा था. उस से कही ज़ियादा बेहतरीन आता किया है.

हर लड़की की चाहत होती है. कोई ना कोई ऐसी चीज हो उस के साथी में जो उसे दिलकश लगे....

मैं चाहती थी.
मेरा वाला यतीमो गरीबो पर रेहम खाने वाला हो उन की सरपरसती करने वाला हो.

 अगर कोई मुझसे पूछे मुझे उन की सबसे बेहतरीन अदा कौन सी लगती है..

तो मैं कहूँगी allhumdulillah मेरा वाला गरीबो और ज़रूरत मंदो का खैरखुवा है.....

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