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नादान........

...........नादान........

धूप से गुजरकर ही
पहुंचा हूं यहांतक
हमने देखी ही अपनी परछाई
इसीलिए रहता हूं हरदम
औकात मे अपनी
और,कुछ लोग इसी से मुझे
नादान भी कहते हैं ,....

अक्सर चेहरे पर बदलते रंग
और हर रंग पर बदलते चेहरे से
वाकिफ रहा हूं मैं
देखे हैं उनके हस्र भी हमने
और , वे लोग ही मुझे
नादान भी कहते हैं....

पता है मुझे मेरे कदमों की ताकत
मेरी हैसियत मेरी अपनी है
जिसे छीनकर नही
सींचकर ही बना पाया हूं
दायरे के भीतर ही रहता हूं
इसीलिए लोग मुझे
नादान भी कहते हैं ....

नादान बने रहना भी 
एक समझदारी है
समझदारों को भी हमने अक्सर
नादानी करते देखा है...
......................
मोहन तिवारी,मुंबई

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6 Comments

Varsha_Upadhyay

29-Sep-2023 03:39 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

29-Sep-2023 10:53 AM

बेहतरीन अभिव्यक्ति

Reply

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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