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तारीफ

ट्रिन ट्रिन ट्रिन घंटी आई,

सुन्दर सी एक धुन सुनाई।
हाथ बढ़ाकर फोन उठाया,
बटन दबाकर कर्ण लगाया।

जी कहिए क्या काम मुझसे,
नारी भड़की काम ही तुमसे।
मधु सिक्त सा स्वर टकराया,
कुछ-कुछ तीखा सा झल्लाया।

बिना नाश्ते ही चले आए,
क्यों न लड़ाई भूल पाए।
बात एक समझ नहीं आती,
कितना उतारूं तेरी आरती।

चुप हूँ बच्चों के ख्याल से,
वर्ना उड़ जाती जंजाल से।
अनाप-शनाप बोल रही थी,
क्लास पति की ले रही थी।

हक्का-बक्का मैं खड़ा रहा,
बहका-बहका सा अड़ा रहा।
शादी-शुदा के भाव आए,
पत्नी-बच्चे ख्वाब सजाए।

बिन रुके वह इतना कह गई,
दो पल सांस लेने रुक गई।
सजनी नंबर गलत लगाया,
सजना समझ गैर हड़काया।

कौन कमसिन कहाँ से आए,
लाग-लपेटे बैन सुनाए।
शादी तो बड़ी दूर माई,
नहीं हुई है अभी सगाई।

मैं तुम्हारा हूँ आभारी,
अभी कुआरा ब्रह्मचारी।
तुमने पति का भाव बताया,
मीठा सा अहसास जगाया।

ख्वाब बच्चों का दिखलाया,
मीठी झिड़की से सहलाया।
भूल गया कि मैं कुआरा हूँ,
मैं भी अब पत्नी प्यारा हूँ।

उसको बात समझ में आई,
थोड़ी झेंपी सी खिसियाई।
गुस्सा इतना सर चढ़ बोले,
बिन जाने ही गाँठें खोले।

नही तुम मेरे मैं पराई, 
क्यों न बोले वह गुस्साई।
कितनी बार गुहार लगाई,
कब फरियाद सुनी 'श्री' माई।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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8 Comments

Milind salve

01-Oct-2023 10:38 AM

V nice

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Punam verma

01-Oct-2023 09:16 AM

Very nice

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