तारीफ

तारीफ

अपने मुंह मियां मिट्ठू कौन बनता है
अपनी तारीफ के पुल कौन बांधा करता है

वो जो करते हैं सदा अपना ही गुणगान
कहते रहते खुद ही को खुद महान इंसान
आस पास उनके विचरते है चाटुकार
मिलाने को हां में हां रहते सदा तैयार
उड़ाते माल मुफ्त का, समझते अधिकार।

कठिन समय आने पर हो जाते हैं गायब ऐसे
वर्षा जाने के बाद नहीं दिखते हैं बादल जैसे
कितना भी ढूंढो, गधे के सींग किधर नज़र आते हैं
ये वो लोग हैं जो चने के झाड़ पे चढ़ाके खुद गायब हो जाते हैं।।

खुद को खुदा समझने की गलती जो करते हैं
समय आने पे इसका कड़वा फल वो चखते हैं
गिरते है लोगों की नजरों से वो बार बार
सहते है फिर दुनिया का तिरस्कार।

समय रहते ये बात समझ लीजे
तारीफ करें लोग तो सिर पे बिठा लेते
निकल जाए मतलब तो नजरों से गिरा देते
फिर लगता है ऐसा ये क्या हुआ मेरे साथ
धोबी का कुत्ता न घर का रहा ना रहा घाट।

तो शब्दों की चाशनी से परेहज थोड़ा कीजे
न खुद अपने मुंह मियां मिट्ठू बनिए
न किसी और को बनाने दीजिए।।

आभार - नवीन पहल - ३०.०९.२०२३❤️👍🌹😀🙏

# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता 


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4 Comments

madhura

01-Oct-2023 04:14 PM

अद्भुत भैया

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सुन्दर सृजन

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Punam verma

01-Oct-2023 09:25 AM

Nice

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