Ahmed Alvi

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02-Oct-2023 हज़्ल हास्य व्यंग्य शायरी

हज़्ल 

न ये ज़मीं के लिए है न आसमां के लिए। 
हर एक अहलिया होती है बस मियां के लिए।। 

न मां पे शैर कहे हमने ओर न अब्बा पे। 
तमाम शायरी की हमने गुलफिशां के लिए।।
 
ज़रूरतें मेरी तंख्वाह पूरी करती है। 
ज़मीर बेच रहा हूं फलां फलां के लिए।। 

निशां बदन पे लिपस्टिक के देख सकते हो। 
कि उसने रात को बोसे कहां कहां के लिए।। 

जो पढ़ रहे हैं सभी नोनिहाल अंग्रेजी। 
नहीं है कोशां कोई मादरी ज़बां के लिए।। 

कहा ये बीवी ने मिसरा लिखा न इक मुझ पर।। 
तमाम शैर तुम्हारे हैं कहकशां के लिए।। 

जो नुकताचीं हैं निकालें वो ऐब ग़ालिब में। 
मिज़ाह ओ तंज़ हमारा है नुकतादां के लिए।। 

हमारे दौर के शौहर हैं फना फिल बेगम। 
नहीं है बेटा कोई भी ज़ईफ मां के लिए।। 

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