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ग़ज़ल

*ग़ज़ल*


इश्क़ वालों ने दिल गुदाज़ रखा।
अपनी हसरत को हमने राज़ रखा।

दिल किसी का न हमसे दुख जाए।
जिंदगी भर यही लिहाज़ रखा।

हम सदा बनके राज़ दान रहे।
हो किसी का भी राज़ राज़ रखा।

वो मुख़ालिफ रहे वफाओं। 
हमने उनसे न इम्तियाज़ रखा।

लाख लम्बे हो साये पेड़ों के।
क़द बशर से कहां दराज़ रखा।

मालो ज़र ठोंकरों में है इनकी।
कब फ़कीरों ने ज़र का आज़ रखा।

अज़मतें देखिये बशरयत की।
ख़ाक होकर भी सरफराज़ रखा।

रब्बे अकबर को वो ज़ात है "शायर"।
 ज़ात को जिसने बेनियाज़ रखा।


*शायर मुरादाबादी*


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7 Comments

Varsha_Upadhyay

04-Oct-2023 08:28 PM

Nice one

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madhura

04-Oct-2023 06:51 PM

V nice

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Alka jain

04-Oct-2023 02:19 PM

Nice 👍🏼

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