महफिल (स्वैच्छिक कविता प्रतियोगिता कविता)
महफिल (स्वैच्छिक कविता प्रतियोगिता हेतु कविता)
नाम में क्या रखा है, जरा दोस्तों की महफिल सजने दो,
कुछ हमें कहने दो, कुछ गुफ्तगू उनकी सुनने दो।
वो महफिल ही क्या जिसमें यारों की जिक्र ना हो,
वो महफिले- रौनक ही क्या जिसमें दोस्तों की फिक्र ना हो ।
हमारी सुबहो- शाम, हमारी दावतें दोस्तों के नाम,
बस ये जिंदगी आ जाए उनके कुछ काम।
हमारी महफिल में रौनक तब होगी जब इनमें दोस्तों की शिरकत होगी,
महफिल कुछ इस तरह जगमगा उठेगा जब दोस्तों की जिंदादिली में हरकत होगी।
यकीन मानो तब हमारी जिंदगी में खुशियों की बरकत होगी।
अपनी दोस्तों की गाथा सबको सुनाई जाएगी,
कुछ इस तरह यारी निभाई जाएगी।
मेरे अजीज दोस्त के लिए हर महफिल सजाई जाएगी।
इस तरह हमारी दोस्ती हर सदी में दोहराई जाएगी।
जर्रा- जर्रा ये कहेगा ऐ मेरे दोस्त मेरी हर महफिल तेरे लिए ही सजेगा,
हर मुश्किल आसान होगा जब मेरी जिंदगी तेरे नाम होगा।
नाम में क्या रखा है जरा दोस्तों की महफिल सजने दो,
कुछ हमें कहने दो, कुछ गुफ्तगू उनकी सुनने दो।।
नवनीता गुप्ता (डेंटल सर्जन )
जमादार टोला बेतिया।
Gunjan Kamal
05-Oct-2023 01:17 PM
👏👌
Reply
madhura
04-Oct-2023 06:41 PM
V nice
Reply