Yusuf

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सोच


ये कैसे छिड़ गया , फिर से ग़मों का साज़ 
के फिर से आ रही है वो दबी से आवाज

सब भूलकर हम मुस्कुराते तो ज़रूर है
पर कहीं न कही तो है ना खुद से नाराज़

जो किसी से कहें नहीं जाते कभी
होते हैं हर दिल में , कितने ही राज

भूली बिसरी यादों की सैलाब जिसको
कभी बयां नहीं कर पाते ये मेरे अलफ़ाज़

खुद से भी जिसको , छुपा कर रखना
बनाया था ऐसा , ख़ुश रखने का अंदाज

फिर से मचल उठा है, ये दिल आज
फिर से आने लगी है , वो दबी सी आवाज

❤️❤️❤️

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9 Comments

Tabassum

13-Oct-2023 12:19 AM

🥲🥲

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कहीं न कहीं,,, होगा,,

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बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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