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नारी

हे नारी शक्ति स्वरूपा तुम, 

मत भूलो अपनी ताकत को।
निराला की पत्थर तोड़ती तुम,
मत भूलो तुम उस पत्थर को।

नहीं है पाषाण जैसा सिर, 
उस हवसी अत्याचारी का।
फिर कर कम्पित क्यों कर हैं, 
तोड़ो बहशी नर खप्पर को।

तुम रानी लक्ष्मी बाई हो, 
जिसने रण धूल चटा दी थी।
सर काट गिराए धरती पर, 
मत भूलो तुम उस मंजर को।

तुम दुर्गा काली महाकाली, 
जिसने दैत्य संहार किया।
कितने मुण्ड पड़े गर्दन में, 
छोड़ो एक मुण्ड संसय को।

नौ माह कोख में रखती हो,  
उसी से तुम क्यों हारी हो।
तुम पर ही उंगली उठती है, 
दें दोष तुम्हारे सिंचन को।

दो हाथ तेरे दो पाँव है, 
कैसे तू नर से निर्बल है।
ममता से तू कोमल है पर, 
पहचानो अपने आंचल को।

तू जगजननी इस दुनिया की, 
ये विश्व चराचर है तुझसे।
तुझे रोंद रहे हैं अपने ही, 
परखो संगी या बालक को।

तुम श्रीराम की सीता हो, 
जिसने दैत्य वंश मिटा दिया।
अग्निपरीक्षा तुमको क्यों, 
जानो अंतर के पावक को।

पौधा तुमने ही रोपा है,  
पल्लव-पल्लव तेरा दर्पण।
फिर भूल कहाँ पर कैसे है,  
तुम गौर करो "श्री" चिंतन को।
 
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


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7 Comments

Mohammed urooj khan

21-Oct-2023 11:43 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Punam verma

21-Oct-2023 08:05 AM

Nice👍

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सुन्दर सृजन

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