Sonia Jadhav

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मज़बूर

एक लड़की खुद को बड़ा मजबूर महसूस करती है,
जब वो प्रेम और परिवार में से प्रेम को चुनती है।

प्रेम से सींचती है वो पति का घर,
सीने में छिपाकर मायके की यादें।

दिनभर मुस्कुराती है
पर हर रात सोते हुए वो अपने पिता के
फोन का इंतज़ार करती है।

मन में माता पिता की नाराज़गी खलती है,
माफ़ी माँगना चाहती है, लेकिन माफ़ी मिलती नहीं 
है।

कैसे समझाये उन्हें जाति और प्रेम दो अलग विषय हैं,
प्रेम उसकी आत्मा से जुड़ा है और जाति उसे जन्म से मिली है।
जितना वो पिता से प्यार करती है, उतना ही  पति से करती है।

उसने आर्शीवाद चाहा था, पर पिता की नाराज़गी मिली।
वैवाहिक जीवन में खुश होते हुए भी वो पिता के एक फोन के लिए तरसती है।

मायके के आगे से गुजरती है कई बार
छूना चाहती है अपने घर का द्वार
पिता की आज्ञा के लिए वो दिन रात तरसती है।

एक लड़की खुद को बड़ा मजबूर महसूस करती है
जब वो प्रेम और परिवार में से प्रेम को चुनती है।

❤सोनिया जाधव
#लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता
#मजबूर
#लेखनी

   7
7 Comments

बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ 👌👌

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Niraj Pandey

19-Oct-2021 10:49 AM

बहुत खूब

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Kavita Gautam

19-Oct-2021 09:56 AM

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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