गजल
अपना उल्लू सीधा करना आज सभी को आता है!
आगे बढ़ते और को देखना फूटी आंख ना भाता है।
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना बस ये बाक़ी काम बचा,
एक से बढ़कर एक यहां इक दूजे को गिराता है।
ऊंची दुकान फीके पकवान अब ये दौर है दौड़ रहा,
तू क्या बैठा बैठा सरसों हथेली पर जमाता है।
अक्ल का दुश्मन क्या जाने, अंगारों पे लेटना,
अपने लिए फूलों का बिस्तर ही बिछाता है।
काल करे सो आज करे आज करे सो कर ले अब,
ये मुहावरा देखे कब तक जीवन में आज़माता है।
काम ना देखे कौए के पीछे जग सारा भागे है,
सुनने को कब से बैठे वो गीत हवा में गाता है।
दीवारों को कान है होते ऐसा बुज़ुर्ग बताते थे,
पर मुंह भी रखती दीवार ये न कोई बताता है।
सावन के अंधे को जाना हरा हरा सब आए नज़र,
जो रौशनी में अंधा हो उसे क्यूं अंधेरा छाता है।
काला अक्षर भैंस बराबर पढ़ लो लिख लो थोड़ा तुम,
क्यूं तू लिखा कहीं कुछ देखे देखे भैंस भैंस चिल्लाता है।
होश के तोते उड़ जायेंगे होश गवा तुम बैठोगे,
बिजली के नंगे तारों को क्योंकर हाथ लगाता है।
*स्वरचित/मौलिक*
फ़राज़ (क़लमदराज़)
S.N.Siddiqui
@seen_9807
Mohammed urooj khan
23-Oct-2023 01:43 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
23-Oct-2023 08:24 AM
👌👏
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Sarita Shrivastava "Shri"
22-Oct-2023 07:26 PM
वाह! बेहतरीन सुन्दर विचार प्रस्तुति👌👌🌹🌹
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