शपथ
शपथ
मिटा के काला,ला दो उजाला,
बना दो चमने वतन निराला।
भगा दो हिंसा का दानव सब मिल-
वतन का करता जो है दिवाला ।।
बहुत लाभ लेता रहा वह अब तक,
छुप-छुप के तम में इस सरज़मीं का।
नयी सोच का ऐसा दीया जलाओ-
कि भगे तुरत देख कर वह उजाला।।
बना दो चमने.....।।
सदा ही भारत देता रहा है,
शरण सभी को यहाँ जो आए।
खुले मन से करके सम्मान सबका-
दिया है आसन पिन्हा गर में माला।।
बना दो चमने.........।।
दिया ताज अपना भी ये खुशी से,
गैरों के गौरव को हर-पल बढ़ा के।
जिसकी बचाया सदा आबरू यह-
उसी ने इज़्ज़त पे डाका डाला ।।
बना दो चमने.........।।
बढ़ा के उसके ज़ुल्मों-सितम को,
इसने लुटाया है ख़ुद को हर-पल।
खाओ क़समें सभी अब मिल कर-
कि निशाचर धरा पे नहीं रहने वाला।।
बना दो चमने..............।।
चंदा से करता है नेह सागर,
देता नमूना अद्भुत मिलन का।
है प्रेम अंबर अवनि का अद्भुत-
करिश्मा-ए-क़ुदरत का यह हवाला।।
बना दो चमने................।।
ले प्रेरणा ऐसी सुन लो सभी जन,
ढहा दो किले अब दुश्मनों के।
है रहती ताक़त फ़क़त एकता में-
नहीं नाग तम का है डसने वाला।।
बना दो चमने वतन निराला।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
31-Oct-2023 04:07 PM
👍👍👍
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