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तुम कितनी सुन्दर लगती हो

आज दिनांक २५.१०.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति:
विषय: तुम कितनी सुन्दर लगती हो
तुम कितनी सुन्दर लगती हो:
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देखा है कल्पना मे तुमको,तुम कितनी सुन्दर लगती हो,
आती हो अक्सर यादों मे,आराइश से भरपूर लगती हो।

आती थीं जब तुम निकट मिरे,मैं अलंकृत तुमको करता था,
कभी नासिका कभी कानो मे आभूषण पहनाया करता था।

ईश्वर ने जो रूप दिया तुमको,किसी आभूषण की दरकार नहीं,
तेरा मुस्कान भरा चेहरा,किसी सज्जा की दरकार नहीं।

अलंकृत तुझको करना मेरा,सूरज को दीप दिखाना था,
चन्दा जिससे लज्जित होता,उस आभा के सम्मुख शमा जलाना था।

तुम गौर वर्ण,माथे बिन्दी,तुम ऐंसे सुन्दर लगते थे,
ज्यों प्रफ़ुल्ल वदनी पर सौ सौ जुगनू जगमग जगते थे।

तुम्हें देख कर ही सुन्दरता गुण परिभाषित होता है,
सुन्दरता के भवन में मानो एक दीप प्रज्ज्वलित होता है।

परवरदिगार ने तुमको एक  अनुपम सांचे मे ढ़ाला होगा,
फ़िर ऊपर से देख तुम्हें वह खुश हो मुस्काया होगा।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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3 Comments

Mohammed urooj khan

31-Oct-2023 04:24 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Babita patel

26-Oct-2023 08:27 AM

V nice

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Reena yadav

25-Oct-2023 05:22 PM

👍👍

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