देश सेवा सर्वोपरी
लघु कहानी - देश सेवा सर्वोपरी।
विशाल पाण्डेय अपनी ड्यूटी खत्म कर अपनी फौज की बाइक से अपने कैंप में जा रहा था ।उसे बड़ी जोर की भूख लगी हुई थी। सोचता आ रहा था आज फौज की कैंटीन में कुछ टेस्टी बना होगा तो जमकर खायेगा।
वो एक स्मार्ट लंबा चौड़ा और मजबूत कद काठी का नौजवान फौजी जवान था।वो अपनी धुन में देश भक्ति गीत गाता चला जा रहा था।कल पंद्रह अगस्त का झंटतोलन था।उसके बड़े ऑफिसर आने वाले थे । कई दिनों से तैयारी चल रही थी।रोज रिहर्सल और प्रेड हो रही थी।पूरे आधे दिन का कार्यक्रम था।विशाल को भी कई साहसिक कार्यक्रम प्रस्तुत करना था।
उसकी टीम में कई जवान सामिल थे।
वो अभी कुछ ही दूर गया होगा की इसके मोबाइल पर एक फोन आया ।उसने अपनी बाइक रोक दिया ।उसे लगा उसके किसी सीनियर का फोन होगा ।किसी जरूरी काम से फोन किया होगा।
लेकिन फोन किसी अनजान लड़की था।उसने अपना नाम रेशमा बताया।उसने कहा विशाल जी मैं आपसे मिलना चाहती हूं।
लेकिन आप कौन है मैं आपको जानता नही हूं,आपसे नही मिल सकता। इतना कहकर उसने फोन काट दीया।लेकिन फिर फोन बजने लगा ।देखिए मैं बस पांच मिनट से ज्यादा आपका समय नही लूंगी ।एक बार मिल तो लीजिए।उसी लड़की का फोन था।मैं अभी किसी से नही मिल सकता।मुझे जोरो की भूख लगी है।उसने झल्लाकर कहा ।वो लड़की जोर जोर से हंसने लगी।चिंता मत करे मैं आपको आपकी मन पसंद डिस खिलाऊंगी ।आप कहा है बताए मैं वही आती हूं।
खाने की बात सुनकर विशाल को लालच आ गया ।उसने अपना लोकेशन बता दिया।थोड़ी देर में वो लड़की अपनी फोर व्हीलर से पांच मिनट में पहुंच गई।उसने कहा आप अपनी बाइक कही सुरक्षित जगह पर खड़ा कर दे और मेरे साथ चलिए मैं आपको सबसे अच्छे रेस्टुरेंट में ले चलती हूं ।विशाल ने अपनी बाइक एक पहचान के दुकान के सामने लगा कर उसकी कार में आकर बैठ गया।उसने लड़की की तरफ देखा ।वो निहायत ही खूबसूरत और स्मार्ट लड़की थी।गोरा रंग लंबे बाल ।बड़ी बड़ी आंखे और लंबी नुकीली नाक बहु ही सुंदर लग रही थी।उसने अपनी आंखें पर काले रंग का गोगल्स रखा था जिससे वो बेहद स्मार्ट लग रही थीं। थोड़ी देर में दोनो शहर के एक सबसे महंगे और नामी रेस्टुरेंट में पहुंचे।
रेशमा ने उसकी पसंद का खाना मंगाया।विशाल ने जमकर खाया और पूछा अब बोलिए क्या काम था मुझसे ।रेशमा ने मुस्कुराते हुए उसकी आंखो में देखते हुए कहा _ मैं इस शहर की महिला कॉलेज की बि ए थर्ड ईयर की स्टूडेंट हूं।मेरे पापा एक बिजिनेस मैन है।मैं आपको हमेशा आते जाते देखती रहती हूं।मुझे आप बहुत पसंद है ।में आपसे दोस्ती करना चाहती हूं।
उसकी बात सुनकर विशाल ने कहा _ देखिए मैडम मैं एक फौजी जवान हूं।मैं आपकी भावना की कद्र करता हूं लेकिन मैं आपसे कोई रिश्ता नहीं रख सकता।मैं अपनी जिम्मेवारी और राष्ट सेवा में बंधा हुआ हूं ।मेरे सामने और कुछ नही दिखता है।आप सुंदर और जवान है आपको मुझसे भी अच्छे लड़के मिल जायेंगे ।इतना कहकर विशाल उठकर वहा से चला गया।रेशमा उसे देखती रही।
अगले दिन रेशमा पंद्रह अगस्त के झंडोत्तोलन समारोह के बाद जब विशाल वापस अपनी बाइक से अपने कैंप जा रहा था।रास्ते में खड़ी मिली।विशाल को देखते ही उसने हाथ देकर उसे रोका ।मेरी गाड़ी खराब हो गई है क्या आप मुझे मेरे घर तक छोड़ देंगे।
विशाल ने कहा ठीक है आइए बैठ जाइए। रेशमा उसकी बाइक पर इसके पीछे चुपचाप बैठ गई। रास्ते में कोई किसी से बात नही किया।जिस जगह का पता बताया था उसने विशाल ने उसे वहा ड्रॉप कर दिया। रेशमा ने कहा थैंक यू।कोई बात नही ।हम फौजी है मुसीबत में देश की जनता की मदद करना भी हमारी डिउटी है।
फिर वो चला गया।
यह सिलसिला कई महीनो तक चलता रहा।रेशमा उससे किसी न किसी बहाने मिलती रही ।लेकिन विशाल ने उसकी दोस्ती कबूल नही किया।
इसी दरम्यान बरसात का महीना आ गया।बारिश शुरू हो चुकी थी।ऐसी बारिश शुरू हुई की उसने पिछले सारे रिकार्ड तोड दिए।सारे नदी नाले उफान पर बहने लगे।सड़के पानी से लबालब हो गई।सबके घरों में पानी भरने लगा।गाड़िया जानवर और घर के सामान सब बहने लगे।कितने लोग लापता भी हो गए।सरकार ने तुरंत एन डी आर एफ की टीम को भेजा जितने प्रभावित जिले थे वहा राहत कार्य हेतु।साथ ही लोकल सेना जो वहा कैंप किए हुए थी उन्हे भी जिम्मेवारी दी गई थी।क्योंकि उनको उस क्षेत्र की भोगौलिक स्थिति के बारे में जानकारी थी। उस टीम में विशाल भी अपनी टीम का सी ओ बनाकर शामिल किया गया था।
दोनो टीम मिलकर सबसे पहले पानी में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना था।जल्दी जल्दी कई राहत शिविर बनाया गए।सबको वहा राशन पानी और दवाएं पहुंचाई जाने लगी।आज विशाल और उसकी टीम मोटर बोट से उस मोहल्ले का दौरा कर रहा था जिस मोहल्ले में रेशमा का घर पड़ता था।हालांकि उसका घर दो मंजिला था लेकिन नीचे का मंजिल पूरे पानी से भर चुका था। रेशमा और उसका परिवार कई दिनों से ऊपर फंसा हुआ था।बिजली गुल थी।फोन बंद हो चुका ।घर का राशन पानी खत्म हो चुका था।उनका बहुत ही बुरा हाल था।विशाल जैसे ही उपर अपनी टीम के साथ पहुंचा रेशमा उसके देखते ही रोने लगी ।विशाल ने उसे संतवाना दिया और सहारा देकर अपनी टीम के साथ उसके माता पिता और भाई बहन को नीचे उतरकर बोट में बैठाया और राहत शिविर में ले गया।तुरंत उनको भोजन उपल्ब्ध करवाया। रेशमा ने बताया मेरे जैसे वहा कई परिवार hsi जो कई दिनों से पानी में फंसे हुए हैं।उनकी भी जान बचाओ ।
विशाल ने अपने सीनियर से बात कर दस और बोट मंगा लिया एन डी आर एफ की टीम को भी बुला लिया । आनन फानन में पुरे दल बल के साथ वो रेशमा के मोहल्ले में फिर गया।कई कच्चे मकान गिर रहे थे।उसमे सैकडो लोगो को वहा से निकाला और राहत शिविर में भेजता रहा। अंत में एक मकान में लोगो को निकालते हुए दीवाल उसके पैर पर गिर गई वो दर्द से चीख पड़ा।उसका एक पैर टूट चुका था।उसे तुरंत उसके साथियों ने किसी तरह निकाला और फौज के अस्पताल में पहुंचाया।
तभी उसे खबर मिली रेशमा नाम की लड़की जो शिविर में लाई गई थी बेहोश हो गई।विशाल ने उसे अपने अस्पताल में बुलवा लिया ।उसका बेड उसकी बगल में लगाया गया।
डॉक्टर ने बताया कई दिनों से भूखी रहने की वजह से खून की काफी कमी हो गई है ।उसे तुरंत एक यूनिट खून चढ़ाना पड़ेगा।विशाल ने कहा मेरा खून जांच कर देखे अगर मैच होता है तो तुरंत चढ़ाए और इसकी जान बचाएं।
खून मैच कर गया।रेशमा को विशाल का खून चढ़ाया गया।शाम तक उसे होश आ गया।
विशाल के पैरो में प्लास्टर चढ़ गया था।डॉक्टर के मना करने के बाद भी वो राहत कार्य में फिर से जुड़ गया। बोट में बैठे बैठे वो अपनी टीम को बोल बोलकर राहत कार्य पहुंचाता रहा।राहत शिविरों में भी राशन पानी दवा और सभी जरूरत की चीजे उपल्ब्ध कराता रहा।
बाढ़ का पानी जा चुका था।अब महामारी फेल चुकी थी ।विशाल अपने फौज की मेडिकल टीम को लेकर सभी प्रभावित क्षेत्र में मरीजों का इलाज करवाने में लगा रहा ।
उसे मलेरिया हो गया।वो अस्पताल में भर्ती था।तभी रेशमा अपने माता पिता के सात फल आदि लेकर पहुंच गई।
उसका हाल चाल पूछा।
विशाल ने भी उसका हाल चाल पुछा।उसने बताया अब सब ठीक है।मेरे मम्मी पापा भी तुम्हारे काम से बहुत खुश है ।
पापा को बड़ा आश्चर्य हुआ की भारत की फौज केवल युद्ध ही नहीं करना जानती बल्कि प्राकृतिक आपदा के समय भी राहत कार्य करने का भी युद्ध लड़ती है।हमारे पूरे शहर के भारत की सेना पर नाज है।
बेटा एक काम और करो मेरी बेटी तुमको बहुत चाहती है।तुम उसका भी हाथ लो और अपने माता पिता से मेरी बात करा दो।रेशमा के पिता ने कहा।
नही अंकल यह तो मेरा फर्ज है मैने अपना फर्ज निभाया है मै आपकी बेटी से विवाह नही कर सकता। विशाल ने कहा।
तो ठीक है जितना खून तुमने मुझे दिया है मेरी जान बचाने के लिए मैं अभी अपनी कलाई काट कर तुम्हे वापस कर देती हूं।रेशमा ने रोते हुए कहा।
अरे नही ऐसा मत करना मैं तैयार हूं।विशाल ने हड़बड़ा कर कहा।
इसकी इस हड़बड़ाहट पर सब हंसने लगे।
जय हिंद।
लेखक
श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
मोब.9955509286
Mohammed urooj khan
11-Nov-2023 11:28 AM
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