घर ??
बेटी पैदा होने पर पति द्वारा घर से निकाली गई बेटी से पिता ने पूछा, "बेटी तूने ऐसा क्यों किया??"
बेटी: "वही तो मैं जानना चाहती हूँ कि आपने ऐसा क्यों किया??"
पिता: क्या?? "मैंने क्या किया??"
बेटी: "आपने मुझे पैदा किया!! अगर नहीं करते तो ये नौबत नहीं आती। ये दिन नहीं देखना पड़ता!!"
आप चाहते तो माँ के गर्भ में पल रहे मेरे भ्रूण को गिराकर मुझसे छुटकारा पा सकते थे किन्तु आपने ऐसा नहीं किया। आप न सिर्फ मुझे दुनिया में लाए बल्कि मुझे पढ़ा-लिखा कर काबिल भी बनाया कि मैं अच्छे-भले में फर्क कर सकूँ और गलत का पुरजोर विरोध कर सकूँ!
फर्क सिर्फ इतना है आप पुरुष हैं, पुरुष का विरोध करने से पहले 10 बार सोचा जाता है।
उसका अपना घर होता है जिसमें से उसे कोई निकालने की हिम्मत नहीं कर सकता। आपने माँ की इच्छा को जामा पहनाया। आपने हम तीन भाई-बहनों में से किसी का भ्रूण परीक्षण नहीं कराया। ईश्वरीय इच्छा को सर्वोपरि माना।
लेकिन आपकी तरह सब नहीं होते पापा।
मैं ही जानती हूँ कि मैंने किस तरह अपने गर्भ का भ्रूण परीक्षण नहीं कराने का विरोध किया। मुझे मारा-पीटा गया। भूखा-प्यासा भी रखा गया। मैं सब सहन करके भी अपनी बात पर डटी रही।
मैंने सोच लिया था कि मर भले ही जाऊँ किन्तु भ्रूण परीक्षण नहीं होने दूँगी, मेरी जो भी औलाद होगी वह ईश्वर का आशीर्वाद होगी।
जब मैं किसी भी तरह राजी नहीं हुई तो मेरे सास-ससुर और पति ने निर्णय लिया कि अगर बेटी हुई तो इसको भी उसके साथ ही घर से निकाल देंगे।
उन्होंने किया भी वही।
हॉस्पिटल में जैसे ही इन लोगों को पता चला कि बेटी हुई है, मेरे पति और सास-ससुर हॉस्पीटल से गायब हो गए। हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने पर मैं अकेली ही ऑटो लेकर घर पहुँची।
ऑटो को देने के लिए मेरे पास किराया भी नहीं था, मैंने उससे कहा कि घर जाकर किराया दे दूँगी। ऑटो वाले को इंतजार करने को कह मैंने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा मेरी सासु माँ ने खोला। मुझे देखते ही सासु माँ ने आवाज देकर मेरे पति और ससुर को बुला लिया। तीनों ने मुझे बहुत बेइज्जत किया। धक्का देकर मेरे मुँह पर दरवाजा बंद कर लिया।
मैं उसी ऑटो से अपनी नन्ही बेटी को यहाँ लेकर आ गई।
आप कह रहे हैं कि मैंने ऐसा क्यों किया?? बच्ची को गिराने में पति क्यों नहीं दिया?? मैंने उसकी बात क्यों नहीं मानी??
पापा! आप मुझसे जिस गलती में पति का साथ देने की उम्मीद कर रहे हैं, मुझे सिखाई तो होती!!
जो 'पाप' आपने नहीं किया उसकी मुझसे उम्मीद क्यों??
नहीं पापा!! आप मुझे ये सीख नहीं दे सकते क्योंकि अगर आप ये सीख मुझे देते, तो मेरा वजूद ही न होता। मैं दुनिया में आने से पहले ही मार दी गई होती!!
आपकी तरह मेरा कोई घर होता तो मैं भी बेघर न होती! आपकी पनाह में न आती!
मेरा फैसला किसी को मंजूर होता या नहीं। मेरा पति या कोई भी मेरा साथ देता या नहीं किन्तु मेरी और मेरी नवजात बेटी के सिर पर छत बरकरार रहती!!
लेकिन इस समाज ने पिता का घर पति का घर तो दिया किन्तु बेटी का घर बहू का छीन लिया। क्योंकि ये पुरुषों का समाज है। यहाँ उनकी सत्ता चलती है। उन्हीं की सहूलियत के हिसाब से नियम बनते और बिगड़ते हैं!!
पति शादी करके पत्नी को अपने घर ले जाता है उसके घर नहीं।
अगर समाज ने पति का घर सच्चे अर्थ में पत्नी के सुपुर्द किया होता तो उसे किसी भी हालात में घर से निकलने के लिए नहीं कहा जाता!!
बेटी और बहू का भी घर हो जहाँ से उन्हें कोई न कह सके कि निकल जा घर से!!
क्या कभी ऐसा हो पाएगा???
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
21-Dec-2023 11:35 AM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Reena yadav
08-Nov-2023 03:05 PM
Nice
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Sarita Shrivastava "Shri"
08-Nov-2023 01:25 PM
👍👍
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