ग़ज़ल(गुजारा)
ग़ज़ल(गुजारा)
तिरे प्यार का गर सहारा न होता,
कभी भी जगत में गुजारा न होता।।
बिखर जाता दिल बन के शीशा मिरा,
अगर प्यार तेरा पुकारा न होता।।
कश्तिये ज़िंदगी डूबती हर समय,
दया-सिंधु का गर किनारा न होता।।
दुनिया नहीं खूबसूरत ये लगती,
क़ुदरत का गर ये नज़ारा न होता।।
हर साँस पे रहता अधिकार तेरा,
यदि रब ने जीवन सँवारा न होता।।
कष्टों भरी ज़िंदगी रहती हर-पल,
अगर वालिदों ने दुलारा न होता।।
नहीं रात में ज्योति मिलती किसी को,
अगर चाँद जैसा सितारा न होता।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
06-Nov-2023 12:50 PM
तेरे, मेरा, कश्तियाँ जिंदगी की डूबती हर समय दिया सिंधु को गर किनारा न होता, वालिद ( सिर्फ एक पिता, आपने जो लिखा है उसका मतलब ढेर सारे पिता और लिख सकते है वालीदेन इसका अर्थ दोनों माता पिता ) बाकि आपने बहुत अच्छा लिखा है बस इन शब्दों को ठीक कर लीजियेगा 🙏🙏
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Mohammed urooj khan
06-Nov-2023 12:41 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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