मान्दारणगढ
जिस दिन गजपति विद्या दिग्गज ने यह बोली बोली उसी दिन से विमला ने उनका नाम 'रसिकदास स्वामी, रक्खा।
विमला विधवा थी कि सधवा यह कोई नहीं जानता था पर आचरण उसके सब सधवा के थे। दुर्गेशनन्दिनी विलोत्तमा का जैसा स्नेह था वह मन्दिर में प्रकाश हो चुका है, तिलोत्तमा भी उसको वैसाही चाहती थी। बीरेन्द्रसिंह के दूसरे साथी अभिराम स्वामी सर्वदा दुर्ग में नहीं रहते थे कभी २ बाहर भी चले जाते थे, उनकी बहुदर्शिता और बुद्धिमानी में कुछ सन्देह नहीं, संसारिक विषयों को त्याग अहर्निश नेम धर्म में लगे रहते थे और राग क्षोभ का भी उन्होंने त्यागन कर दिया था। बीरेन्द्रसिंह ने इनको अपना दीक्षा गुरु बना रक्खा था।
इन दोनों के अतिरिक्त आसमानी नाम की एक और परिचारिका बीरेन्द्रसिंह के साथ आई थी॥