समाज का कड़वा सच-9
मैं सुनता हूं ऐसा कि तेरी मुक्ति के लिए, ईश्वर स्वयं तुझे सुनाएं गरुड़ पुराण...... देख जाग जमीन पर हो रहे हैं रिश्ते तार-तार, निकाल रहे हैं मेरी जान......... तू आजाद होकर बेफिक्र उड़ता होगा आसमानों में, बेशक नाम लिखा जाएगा अब तेरा शहीद जवानों में, अधिकारी देंगे सलामी गर्व से लेंगे तेरा नाम, देख जरा एक बार तुझ बिन मैं संभालू कैसे काम, भटकता हूं लेकिन मजबूर हूं, नहीं दे सकता तेरी शहादत की मिसालें, माफ़ करना ऐ दोस्त अब तेरे घर भी, न उतरे गले से भोज के निवाले..........
मैं अपनी पुरानी यादों के साथ भीरु के घर बैठा तो था, लेकिन जाने क्यों अब और उसकी दहलीज पर आना मुझे अच्छा सा नहीं लगता, क्योंकि बिना उसके मुझे यहां हर कोई बिना आत्मीयता के और भी बेगाना सा लगता है, क्योंकि मौत के पश्चात मात्र दो दिनों में ही मैंने जिंदगी के वह आलम देखें ,जिसकी उम्मीद हमनें शायद सपनों में भी नहीं की थी।
रिश्तो का ऐसा वीभत्स रूप और स्वार्थ की ऐसी पराकाष्ठा शायद ईश्वर को भी अपनी खुद की सृष्टि को मिटाने पर मजबूर कर दे, जो दृश्य मैं देख रहा था उसका साक्षी बन ईश्वर ना जाने क्यों, समय-समय पर क्रोधित होकर अपना वीभत्स रूप दिखाई ही देता है।
शायद इसलिए मेरे अंतर्मन की व्यथा को देख प्रकृति भी पल पल में अपना रूप बदल रही थी ,और शायद वो भी मेरी मनः स्थिति को जान गई , और एक तेज हवा के झोंके ने मेरे सामने रखी हुई खाने की प्लेट(पत्तल) को पलट दिया, और शायद मैं भी उस अन्न के निवाले को गृहण करना नहीं चाहता था।
सभी अचानक उठ खड़े हुए और घबराहट से मेरी ओर बढ़े,,, लेकिन मैंने इशारे से उन्हें शांत होने को कहा और हाथ धुल उस पत्तल की ओर देखने लगा, जो भीरु के लिए रखे गए खाने से उड़कर मेरी पत्तल के साथ नजर आ रही थी.......
यह कैसे हुआ, यह कोई नहीं समझ पाया..... लेकिन मैंने मन ही मन अपने दोस्त से क्षमा मांगी और उस को धन्यवाद दिया कि आज भी वह मेरी मन की स्थिति से वाकिफ है, और तभी अचानक तेज बारिश ने मेरे आंसुओं को ढक दिया, ऐसे लगा जैसे भीरुअपने अश्रु धारा में मेरे आंसुओं को छिपाकर यह कहना चाहता हैं कि ,हे मित्र क्षमा करें जो मेरे अपनों के व्यवहार ने तुझे दुख दिया, उनके सामने तेरे आंसुओं का कोई मोल नहीं।
अचानक तेज आंधी चलना, बारिश होना और मेरा भीग जाना, सब कुछ अनायास ही था, जिसे वहां उपस्थित बुजुर्ग ने अपशगुन की संज्ञा दी, और शायद कुछ समझदार बुजुर्ग ने कुछ न कह पाने की स्थिति में सिर्फ हाथ जोड़कर माफी मांग मुझे चल जाने की समझाइश दी।
जिसे भाप मैं परिवार को आते-आते सिर्फ इतना ही कहा पाया कि, कैलाश ने आकर भीरु के कुछ पैसे लौटाये हैं ...........
आकर ले लेना शायद कुछ काम आ जाए, और मैं तुरंत लौट आया, मैंने गौर किया कि मेरे जाने से लेकर वापसी तक वहीं कौआ लगातार मुझ पर नजर बनाए हुए थे, और जैसे ही मैं लौटा वह खुले आसमान में गायब हो गया, जिसे देख एक पल ऐसा लगा जैसे खुद भीरु,यही कहावतें सही होती है कि मृत्यु के पश्चात कुछ दिन आत्मा पक्षी के रूप में रहती हैं, तो शायद वही मेरे साथ अपने घर तक एक साक्ष्य की तरह गया और मेरे वापसी पर पुनः लौट गया।
क्रमशः...............