Sunita gupta

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स्वैच्छिक विषय कैसे समझाऊं

—-कैसे समझाऊँ —-
वो दिल कहाँ से लाऊँ जो तेरी याद को भुला
दे 
वो ग़मकैसे दिखाऊँ जो तुझे मोम सा गला दें ,
वो लफ़्ज़ कहाँ गये खो ,जो तुझे न लिख पाई 
मुहावरों में लिखी कहानियाँ पुस्तकें ढो  न पाईं 
वो दर्द का पिघलता रसा फिर से कैसे जमाऊँ 
पत्थर दिल भी पिघलाये बैजू ने,नैनों से नीर बहाए बैजू ने  ,
फिर भी न मोम पत्थर बन पाये ,नीर बहे पर न 
समुद्र भर पाये ,
डूब ता मन कैसे सम्भालूँ ,तेरे जाने का अहसास कहाँ से लाऊँ !
बिखर गईं धीरज की कड़ियाँ ,मुलाक़ात के वादों की घड़ियाँ कहाँ से लाऊँ ! 
गीत के स्वर तार जो बिखरे ,तुम्हें सुना कर पास बुलाऊँ ,
हर दम तेरी मुहब्बत का उजाला बुलाता है,
अब तो ‘जय’मोम के उजाले में ही जलती है । 
जलती हुई इस’जय’को अब तुम गले से लगा लो ,
ग़म का दर्द रिस रिस कर बरसता  है
,कैसे तुम्हें समझाऊँ !!———
———॥————////////——————-
   04-11-23:::::::::
रचयिता—जयमाला-गुप्ता (जयपुर)
स्व रचित —मौलिक 
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5 Comments

Mohammed urooj khan

06-Nov-2023 04:45 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Swati chourasia

06-Nov-2023 07:20 AM

👌👍

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Gunjan Kamal

06-Nov-2023 12:26 AM

👌👏

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