अपराध

                                        अपराध
जैसा कि हम जानते है समाज के बिना जीवन अधूरा माना जाता है । मानवीय समाज में मानवीय नियम और कानून समाज व्यवस्था को चलाने के लिये अलग-अलग समाज के हिसाब से बनाये जाते है। बने हुए सामाजिक नियमों को तोडने को अपराध की श्रेणी में गिना जाता है। सामाजिक नियमों में आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और मानवीय रहन सहन के नियम, समयानुसार प्रतिपादित किये जाते रहते हैं। जब से मानव समाज की रचना हुई है उसी समय से उसने अपने संगठन की रक्षा के लिए नैतिक व सामाजिक नियम बनाए है और उन नियमों का पालन मनुष्य का 'धर्म' बतलाया गया हैं। किंतु, जिस समय से मानव समाज बना है, उसी समय से उसके नियमों के विरुद्ध काम करनेवाले भी पैदा हुये है और इसप्रकार के लोग तब तक पैदा होते रहेंगे जब तक मनुष्य का प्रवृति न बदल जाए। जैसा कि हम जानते हैं हमारे देश में कई प्रकार का धर्म है। एक राज्य में एक ही प्रकार का सामाजिक संगठन भी नहीं है, रहन-सहन व विचार में भेद है, कहीं पर स्त्री को तलाक देना वैध है, कहीं पर सर्वथा वर्जित। अभी अभी कुछ दिनों पहले तक अपने ही देश मे स्त्री को तलाक देना वैध था परन्तु आज नहीं, कहीं पर संयुक्त परिवार के जीवन उचित है कहीं पर नहीं। कई देश धार्मिक रूप से किया गया विवाह वैध मानते है वही यूरोपीय देशों में धार्मिक प्रथा से किए गए विवाह का कोई कानूनी महत्व ही नहीं होता। ऐसी स्थिति में एक देश का अपराध दूसरे देश में सर्वथा उचित आधार नहीं हो सकता है। 
        विदित हैं अपराध एक सामाजिक विषमता हैं। इसकी ना ही कोई जाति होती हैं ना ही कोई धर्म, अपराध करने वाला सिर्फ और सिर्फ अपराधी होता हैं । इसको अगर सरल भाषा में परिभाषित करे तो अपराध उसी को माना जायेगा जो गांव, समाज, राज्य व देश में जनहित के लिए बनाये नियम कानूनों के उलट कार्य करता हो अर्थात अपराध कानूनी नियमो कानूनों के उल्लंघन करने की नकारात्मक प्रक्रिया है, जिन कुकृत्यों द्वारा सामाजिक तत्वों का विनाश होता है । मोटे तौर पर सच बोलना, चोरी न करना, दूसरे के धन या जीवन का अपहरण न करना, पिता, माता तथा गुरुजनों का आदर, कामवासना पर नियंत्रण्‌, यही मौलिक नैतिकता है जिसका हर समाज में पालन होता है और जिसके विपरीत काम करना अपराध।
              एक अपराधी को संरक्षण देना भी अपराध की श्रेणी में आता है। अपराधी किस्म के लोग बुद्धि में तो प्रवीण होते हैं परन्तु उसका प्रयोग सदा अनैतिक कार्यो में करते हैं। पूर्व में ये प्रचलन हुआ करता था कि जिसने भी समाज के आदेशों की अवज्ञा 
की है उससे बदला लेना चाहिए। जिसके लिये दोषी व्यक्ति को कानून द्वारा निर्धारित दंड व घोर यातना दी जाती थी। कारागारो में उसके साथ पशु से भी बुरा व्यवहार होता था। यह धारणा अब बदल गई है अब अपराध को शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार का रोग मानते हुए उसे समाज में वापस करते समय शिष्ट व सभ्य नागरिक बनाकर वापस किया जाता है। अतएव कारागार यातना के लिए नहीं बल्कि सुधार के लिए ही होता है। यदि ऐसे व्यक्ति को दंडित किया जाए तो इससे उसका सुधार नहीं होता, अपितु इससे उसकी मानसिक स्थिति और भी जटिल हो जाती है। ऐसे अपराधियों के उपचार के लिए मानसिक चिकित्सक की आवश्यकता होती है।
घर के भीतर से लेकर घर के बाहर तक महिलाओं को आज भी तरह-तरह के अपराधों का सामना करना पड़ता है। नवजात बच्चियों से लेकर 80 साल की वृद्ध महिला तक यौन हिंसा की शिकार हो रही हैं। दहेज़ जैसी कुप्रथा आज भी महिलाओं के लिए अभिशाप बना हुआ है। लोगों को सुंदर पत्नी चाहिए पर बेटी नहीं। बेटियों का भ्रूण हत्या आम हो गया है ऐसे कुकृत्यों में सम्मिलित विकृत मानसिकता वाला ब्यक्ति समाज के लिए धब्बा हैं, कलंक है। अगर आप सुबह-सुबह टीवी चैनलों को देखेंगे या अखबारों को पढ़ेंगे तो महिला अपराध से जुड़ी खबर से आपका सामना जरूर होगा। हमारे देश में महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार व अन्य अपराधों के 90 प्रतिशत मामलों में अन्य कोई नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, पड़ोसी आदि ही शामिल होते हैं। हालांकि कानून अब हमारे साथ पहले की तुलना में ज्यादा मजबूती से खड़ा है, फिर भी ज्यादातर मामलों में महिलाएं व परिवार के लोग चुप्पी साध लेते हैं। यही वजह है कि सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। महिलाओं को समान दर्जा और सुरक्षित माहौल देने के लिए जरूरी है कि छोटी उम्र से ही लड़का हो या लड़की उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। नियम व कायदे-कानून दोनों के लिए बराबर बनाए जाएं। यदि किसी महिला के साथ कोई घटना होती है तो परिवार को उसका साथ देना चाहिए ताकि वह खुलकर अपनी समस्या को उनके सामने रख सकें। तथा वो लोग जो अपने-अपने फेसबुक, व्हाट्सएप व ट्विटर से संदेश साझा करना शुरू कर देते हैं तथा शाम होते मोमबतियां लेकर सड़क पर धरना प्रदर्शन शुरू कर देते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि घटना हो जाने के बाद मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन व विरोध करने के बजाय सामाजिक स्तर पर महिलाओं के प्रति आम विचारधारा में बदलाव लाने की कोशिश की जाए जिससे महिलाओं पर होने वाले अपराध कि समस्या का जड़ से समाधान संभव हो सके।
गांव घरों में मनोरंजन की कमी भी अपराध को बढ़ावा देता है। कई युवाओं व किशोरों को अक़्सर देखा जाता हैं कि वे देर रात अत्र-तत्र मित्रों संग घूमते रहते है, साइकिल या मोटरसाइकिल लहरिया कट चलाकर यातायात के नियमों का सरेआम धज्जियां उड़ाते नज़र आते है। उनके सामने गलती से आ गए तो आपका घायल होना निश्चित है क्यों कि वे आपके ऊपर से वाहन गुजारने में जरा भी संकोच नहीं करते। ट्रेन को बिन स्टेशन व बिन कारण चैन पुलिंग कर देते हैं तथा किसी का सामान उठाकर भाग जाते है। किसी भी महिला यात्रियों के साथ छेड़खानी कर देते है। इस प्रकार लूट-खसोट, चोरी-डकैती, मार-पीट, जबरजस्ती, अपहरण, फिरौती व मर्डर जैसी अनेक कुकृत्यों को अंजाम दे जाते है। यह कहना गलत होगा कि इसमें अशिक्षित लोग ही शामिल होते है अपराध एक विकृत मनोवृत्ति है और इसमें कुछ शिक्षित विद्वान भी सम्मिलित है जो खुद कभी कभी अपने अनुचित कार्यों की नैतिकता सिद्ध करने में अपनी विद्वता का उपयोग कर आतंकियों व अपराधियों का साथ दे जाते है।
वर्तमान समय मे ग़रीबी एक अभिशाप हैं हम सभी इससे अवगत है। हमारे देश मे आज ग़रीबी से बहुत सारे लोग जूझ रहे है तथा कोई विकल्प नहीं मिलने से अपराध का रास्ता पकड़ रहे हैं। बचपन की एक घटना के माध्यम से आपको अपराध की दुनियां में कदम रखने वाला एक अपराधी उमेश(काल्पनिक नाम) की कहानी बता रहा हू। उमेश का परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर था । विद्यालय में परीक्षा समाप्ति के उपरांत नए सीजन का जब समय आया शिक्षक गण किताब, कॉपिया व पैसे कुछ बच्चों को दे रहे थे व कुछ बच्चों को नहीं। उमेश के मन में ये प्रश्न गूँजता रहा कि ऐसा क्यों हो रहा हैं ? उसदिन उमेश ने  निश्चय किया कि ये शिकायत प्रधानाध्यापक महोदय से जरूर करेगा और उनके आने का इंतजार करता रहा । प्रधानाध्यापक जी अपने कक्ष में जैसे ही आये उसने अपनी शिकायत से उन्हें अवगत कराया । प्रधानाध्यापक महोदय ने बतलाया कि ये सुबिधा सरकार केवल अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए है न कि सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए । यह बात सुन उमेश स्तब्ध हो गया और कहा सर हम भी तो गरीब हैं पर उनका जबाब सिर्फ वही रहा, ये आपके लिए नहीं। कुछ दिनों के उपरांत उमेश पढ़ाई छोड़ दिया व धर में एक छोटा दुकान चलाने लगा। परंतु उस छोटे से दुकान से उनके परिवार का गुज़र-बसर नही हो पा रहा था। अब उमेश मजदूरी करने बाहर शहर जाने का निश्चय किया। उसने अपने मम्मी, पापा को दुकान की जिम्मेवारी देकर खुद शहर चला गया। शहर में काम के सिलसिले से वह बहुत इधर-उधर घुमा पर उसे काम नहीं मिला। अब उसके पास बचा हुआ शेष पैसा भी खत्म हो चुका था। उस नौजवान के शरीर को भूख ने कमजोर कर दिया था। वह फुटपाथ पर बैठकर हर आने-जाने वाले ब्यक्तियों के आगे हाथ फैलाने पर विवस था। दुख की बात तो ये की उसे नौजवान व हाथ पैर से सही देख कोई भीख भी नहीं दे रहा था। वह सभी के सामने अपनी भुखमरी और बर्बादी का कहानी सुना रहा था, परंतु सबकुछ बेकार होता जा रहा था। कोई कामचोर तो कोई कहता ये सब इन लोगों का धंधा हैं। भूख से तड़पता उमेश वही पास में एक मन्दिर के नीचे बैठकर दहाड़ें मारकर रो पड़ा। भूख उसकी आँतो को चबा रही थी। उसने आंसुओ से पथराई आंखों को मंदिर की तरफ उठाईं और बोला - "हे ईश्वर! मुझें पैसों के अभाव में स्कूल छोड़ना पड़ा, पेट भरने के लिए मैंने अपना एक छोटा व्यवसाय शुरू किया, लेकिन कुछ नहीं कमा पाया। मैंने अमीरों के पास जाकर काम माँगा लेकिन मेरी बदहाली को देखकर उन्होंने मुझे बाहर धकेल दिया। फुटपाथ पर भीख मांगना शुरू किया तो वहाँ लोग कामचोर कह रहे है। "हे प्रभु! जन्म भी आपने ही दिया है अब मृत्यु भी आप हमें अभी ही दे दो" अब मैं हतास व निराश हो चुका हूं मुझें कुछ भी नहीं सूझ रहा क्या करूँ। एकाएक वह चुप हो गया और उठकर खड़ा हो गया। उसके आँखों में दृढ़ निश्चय था उसने पेड़ से एक मोटी शाखा तोड़ी और शहर की ओर चल पड़ा। वह चीखा -'मैंने अपनी पूरी ताकत से रोटी माँगी लेकिन दुत्कार दिया गया। अब मैं इसे अपने बाजुओं की ताकत से ज़बरन छीनूँगा। मैंने दया और प्रेम के नाम पर रोटी माँगी, लेकिन किसी ने मानवता नहीं दिखाया। समय के साथ उमेश एक बहुत बड़ा लुटेरा और हत्यारा बन गया। अब उसकी आत्मा मर चुकी थी अब जो भी उसके सामने आता, वह क्रूरतापूर्वक उसे कुचल देता था। उसके पास अब अकूत संपत्ति इकट्ठा हो चुकी थी वह धन्ना-सेठों पर राज करने लगा। उसके साथी उसकी प्रशंसा करते न थकते थे। कुछ वर्षों बाद पता चला उसने कई बड़े बड़े अपराधिक कृत्यों को अंजाम दिया हैं। कहने का तात्पर्य यह हैं कि देश मे ऐसे कई उमेश जैसे लोग है जिन्हें बचपन से ही इसप्रकार के विकृत नियमों से सामना करना पड़ता हैं। उनके मन मस्तिष्क में बाल्यावस्था से ही एक अलग भाव पैदा हो जाता हैं। यह जरूरी नहीं कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के छात्र ही गरीब होते हैं आर्थिक तंगी से कोई भी वर्ग अछूता नहीं। इसप्रकार कई लोग गरीबी से त्रस्त होकर भी अपराध की राह पकड़ लेते हैं। आज के परिपेक्ष्य में कुछ हद तक इसमें सुधार आयी है लेकिन जितना सुधार की गुंजाइश होनी चाहिए उतना कतई नहीं। सुझाव- रोज़गार का नए अवसर पैदा हो, जनसंख्या पर नियंत्रण हो तथा इसके लिए कोई ठोस कानून बने व 'आरक्षण' आर्थिक आधार पर होने चाहिए न कि जातिय आधार पर। 
                  जिस देश में मान्यता हुआ करती थी कि "साई इतना दीजिए जामे कुटुम समाए , मैं भी भूखा न रहूं साधु न भूखा जाए"  वहां पर अब लोग अपने पेट की भूख को शांत करने में लगे हुए हैं। दूसरी ओर हर व्यक्ति अपने को बेहतर करने में लगा हुआ हैं लोगों में सहनशीलता, त्याग, करूणा, दया, सुनने व सहने की क्षमता, समझने की क्षमता और बड़ों का आदर समाप्त होता जा रहा है। लोग अपना संतुलन खोते जा रहे हैं। वह भारत जो कभी विश्वगुरु कहलाता था, वह भारत जो कभी दुनिया को नैतिकता का ज्ञान सिखलाता था,  जहाँ नदियों के किनारों पर शेर और अन्य पशु एक साथ पानी पिया करते थे, जहाँ छोटे-बड़े शिस्टाचार व आदर के साथ जीते थे। वहां पर आज के परिवेश में लोग अपनों के ही रक्त के प्यासे हो रहे हैं। आखिर यह सब क्यों दरअसल हमारी जनसंख्या बढ़ने के साथ हमारे साधन और संसाधन सीमित रह गए हैं। यहां अपराध बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं इनमें कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार है-

1. माता-पिता या परिजन का बच्चों के साथ वर्ताव - सबसे पहले मैं आपको बाल्यावस्था में ले चलता हूं जहाँ एक बालक के मन मस्तिष्क में किस प्रकार अपराध की मानसिकता की शुरुआत होती हैं। बच्चों का सबसे ज्यादा समय माता-पिता के पास ही गुजरता है। अक्सर देखने मे आता हैं कि कई माता-पिता या परिजन अपने बच्चों के सामने ही झूठी बाते, अमर्यादित भाषा का प्रयोग, मार-पीट व झगड़ते रहते हैं तथा कई बार गलत आचरण का नमूना भी प्रस्तुत कर देते हैं जो सर्वथा अनुचित हैं । ऐसा करना ख़ुद तो ग़लत हैं ही साथ ही साथ इसका प्रत्यक्ष प्रभाव बच्चों के मन-मस्तिष्क पर पड़ता हैं। अक्सर ये भी देखा जाता हैं कि अगर उनका बच्चा बाहर से कोई भी छोटी से छोटी बस्तु उठा कर घर लाये या बाहर अपने गांव मुहल्ले में किसी से झगड़ कर घर आये उसके तद्पश्चात माता-पिता या परिजन उसको डाँटने समझानें के बजाय उसे संरक्षण व प्यार-दुलार देते नज़र आते हैं अगर ऐसा हैं तो समझ लीजिये यहाँ से ही अपराध की नींव पड़ जाती हैं । धीरें-धीरें उस बच्चे को इन आदतों का लत लग जाता हैं और इस प्रकार वह बाद में बड़ी घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं । ऐसी परिस्थितियों में अभिभावकों द्वारा दिया गया संरक्षण, प्यार दुलार व खुद उनका ब्यक्तिगत विकृत आचरण ये आग में घी डालने का कार्य करता हैं । सुझाव- माता-पिता या परिजन को चाहिए कि सबसे पहले अपना आचरण व ब्यवहार धर-परिवार व समाज के प्रति सही व सकारात्मक रखें । अगर उनका बच्चा कोई छोटी ही बस्तु बाहर से उठाकर घर लाता हो तो उसके बारे में उससे पूछे कि वह उस बस्तु को कहाँ से ला रहा हैं । बच्चा बाहर किसी से झगड़ कर आता हैं तो उसे समझाये व खुद उसका निदान निकाले । अपने बच्चे द्वारा किये गए किसी भी प्रकार के गलत कृत्यों पर उसको डॉट फटकार लगावे न कि प्यार दुलार दे । इसके सुधार के लिए प्रारंभ में आदत डालनी पड़ती है कि वह दूसरों के सुख में निज सुख का अनुभव करे। वह ऐसे काम करे जिससे सभी का हित हो और सब उसकी प्रशंसा करें। 

2. संगति का असर - किसी ने ठीक ही कहा हैं "संगति से गुण होत हैं संगति से गुण जात" । लोग उन्हें ही अपना मित्र बनाना चाहते हैं जिनके साथ उनका हाव-भाव, स्वभाव, आचार-विचार, मिलता जुलता हैं । आप अगर किसी भी अपराध का बारीकी से अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि अधिकतर केस में उसका मित्र उसके साथ संलिप्त था। चोरों की संगति में यदि किसी शिशु को रख दिया जाय तो क्रमश: उसकी मनोवृत्ति चोरी की ओर अग्रसर अवश्य हो जाएगी। इस प्रकार यदि कम अवस्था के अपराधी को साधारण कैदियों के साथ जेल में रखा जाय तो इस स्थिति का प्रभाव उसे संभवत: कारावास से मुक्त होने पर अपराध करने को प्रेरित करे। अत: समाज में कम आयु वाले अपराधियों को दंडाभियोग से विरत करने के अभिप्राय से अपराध को प्रोत्साहन देनेवाले वातावरण से अलग रखने की योजना की गई है । सुझाव- बुरे संगति से बचे व अच्छे लोगों के साथ मित्रता करे । माता- पिता का भी दायित्व हैं कि उन्हें अपने बच्चे का हर क्रियाकलापों, आवागमन व मित्रों, के बारे में जानकारी हो ।

3. आर्थिक कारण- आज महंगाई का दौर में बिना पैसे के कोई समस्या हल नहीं हो सकता। पैसो की आवश्यकता हम सभी को हैं चाहे कोई गरीब हो या अमीर। अब ऐसा लगता है कि जिसके पास पैसा है, उसके पास सब कुछ है। पैसे की दौड़ नहीं रुकेगी तो अपराध कैसे रुकेंगे ? समाज में भी पैसे वालों को इज्जत मिलती है, चाहे उसने वह पैसा अपराध की दुनिया से ही क्यों न कमाया हो। आज समाज में उत्पन आर्थिक विषमता के कारण कुछ लोगों के पास बेहिसाब धन है तो कुछ लोगों को एक वक्त की रोटी की भी परेशानी है।
पढ़े लिखे लोगों के पास काम नहीं है। ऐसी स्थितियां आ गई हैं कि या तो व्यक्ति अपराध करे या फिर आत्महत्या। उसे जो रास्ता समझ में आता है, वह चुन रहा है। 

4. शिक्षा - प्राचीन समय मे शिक्षा का केंद्र गुरुकुल हुआ करता था जहाँ गुरुओं द्वारा बिना कोई मूल्य चुकाए निःस्वार्थ भाव से ज्ञान दिया जाता था। परंतु आज के समय मे शिक्षा ब्यापार का अड्डा बन चुका हैं। यानी जिनके पास धन का अभाव हो वे शिक्षा से बंचित रह जाते है। दूर दराज़ गावों में आज भी पैसों के अभाव में गरीब के बच्चें शिक्षा से बंचित रह जाते हैं । उन्हें न तो अच्छा शिक्षा ही मिल पाता न ही अच्छा मार्गदर्शन व समाज। बाल्यावस्था में उचित शिक्षा न मिलने के कारण बहुत बच्चे अपने पथ से दिग्भ्रमित हो जाते हैं उन्हें अच्छा बुरा का ज्ञान नहीं हो पाता। समाज से अलग मजदूरों कि जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो जाते है और घिरे धीरे कई बच्चे अपराध की दुनियां में कदम बढ़ा लेते हैं, तदोपरान्त समय बीतने के साथ एक बड़ा अपराधी बन जाते हैं। सुझाव- शिक्षा का स्तर में सुधार हो, आर्थिक बदहाली में जीवन जी रहे गरीब के बच्चों के अध्ययन के लिए कागजों में नहीं जमीनी स्तर पर कार्य हो।

5. मनोवैज्ञानिक कारण- कुछ ब्यक्तियों में सदा भीतरी मानसिक असंतोष की स्थिति बना रहता है तथा मन में हीनता की भावना जागृत होती रहती हैं वो मनोरोग से ग्रसित होकर पूरा समय ऐसे कामों में अपने आप को लगाए रहता है जिससे सभी लोग उसकी ओर देखें और उसकी प्रशंसा करे। ऐसे ब्यक्ति हमेशा सुर्खियों में बने रहने व खुद को दूसरे लोगों से अधिक बलवान व श्रेष्ठ साबित करने के लिए अपराध कर बैठते है। ऐसे व्यक्ति स्वयं को सदा चर्चा का विषय बनाए रखना चाहते है। यदि उसके भले कामों के लिए चर्चा नहीं हुई तो बुरे कामों के लिए ही हो। उसका मन मस्तिष्क उसे शांत चित नहीं रहने देती। वह उसे सदा विशेष काम करने के लिए प्रेरणा देती रहती है। 

6. सामाजिक कारण -समाज के बिना ब्यक्ति में मानवीय मूल्यों का नैतिक ज्ञान नहीं हो पाता है, इसके लिए समाज में सुशिक्षा की आवश्यकता होती है। इन सामाजिक नियमों में आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और मानवीय रहन सहन के नियम, विभिन्न समय और सभ्यताओं के अनुसार प्रतिपादित किये जाते हैं। मनुष्य की कोई प्रवृति बचपन से ही प्रबल हो जाती है तो आगे चलकर वह विशेष प्रकार के कार्यो में प्रकाशित होती है। ये कार्य समाज के लिए हितकर भी हो सकते है या समाजविरोधी। समाजविरोधी कार्य करने वाले व्यक्ति के प्रति उचित दृष्टिकोण रखना होगा। जिस बालक को बड़े लाड़ प्यार से रखा जाता है और उसे सभी प्रकार के कार्यों को करने के लिए छूट दे दी जाती है, उसमें दूसरों के सुख के लिए अपने सुख को त्यागने की क्षमता नहीं आती। ऐसे व्यक्ति की सामाजिक भावनाएँ अविकसित रह जाती है। उसके जीवन में व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हो पाता हैं, इसके कारण वह न तो सामाजिक दृष्टि से भले बुरे का विचार कर सकता है और न ही बुरे कामों से स्वयं को करने से रोकने की क्षमता प्राप्त कर पाता है। बालक के माता-पिता और आसपास का वातावारण तथा पाठशालाएँ इसमें महत्व का काम करती हैं। उचित शिक्षा का एक उद्देश्य यही है कि बालक में संयम की क्षमता आ जाए। जिस व्यक्ति में आत्मनियंत्रण की स्थिति जितनी अधिक रहती है वह अपराध उतना ही कम करता है और यह सबकुछ समाज से ही पाया जा सकता हैं।

7. घार्मिक कारण- आजकल के परिदृश्य पर नज़र डालें तो ऐसे कई मामले देखने मे आते है कि धार्मिक संगठने जो धर्म का पाठशाला होती है वहाँ धर्म के नाम पर नफरत पैदा किया जाता हैं जो मानवता के लिए बहुत ही खतरनाक है ऐसे कटरपंथी अपराधिक विचारघारा वाले लोग मानवीय समाज के हितैषी नहीं होते और बड़े-बड़े अपराध को अंजाम दे जाते है, जो अत्यंत ही दुखद है। उपाय - धार्मिक संगठनों को अपना धर्म से संबंधित मूल कार्य ही करना चाहिए न कि अपराधिक कृत्यों में सम्मिलित होना चाहिए जो कटरपंथी अपराधिक मानसिकता को बढ़ावा दे।


8. राजनीतिक कारण - कोई भी राष्ट्र मजबूत प्रतिनिधित्व से ही महान बन सकता हैं । हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहिये की एक राजनीतिज्ञ के लिए डिग्री कोई मायने नहीं रखता जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है, परंतु एक सिपाही व चपरासी भी इंटरमीडिएट पास होने चाहिए । सत्ता सुयोग्य ब्यक्ति के हाथ नहीं होने से वह अपने स्थान का दुरुपयोग कर अपराध को बढ़ावा देने वाले कार्य को अंजाम दे जाते है। जिससे राज्य में अराजकता व भ्रष्टाचार का ग्राफ बढ़ जाता है तथा अपराधी किस्म के लोगो की संख्या बढ़ने लगती है। सत्ता लोभ इसका एक बहुत बड़ा कारण हैं। 

9. भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार जो स्वयं अपने आप में अपराध हैं, आये दिन लूट-खसोट खबरें आती रहती हैं, देश में हुए बड़े-बड़े घोटाले इसी का देन हैं जैसे चारा घोटाला, बोफोर्स धोटाला, सबमरीन घोटाला, युरिया घोटाला, दूरसंचार घोटाला व कोयला घोटाला इत्यादि। ऐसे कृत्यों को अंजाम देने वालों का बात करें तो एक कतार सी लग जायेगी। भला देश ऐसे प्रणाली से उन्नत व अपराध मुक्त कैसे हो पायेगा ?  
             
10. न्याययिक कारण- कानून व्यवस्था में व्यवहारिक आचरण वाले ब्यक्तियों की अपार कमी हो गई हैं। कानून ब्यवस्था आज के समय में इतना कमजोर हो गया है कि उसे पैसों से खरीदा जा सकता है। जिनके पास पैसा हैं वे न्याय भी अपने पक्ष में करवा लेते हैं। जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता हैं व अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं।

11.मुश्किल परिस्थितियां - मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसी मुश्किल परिस्थितियां आ जाती है जिससे त्रस्त होकर व्यक्ति अपराध करने को विवश हो जाते हैं। प्रेषित हैं चंद पंक्तिया-
जब शिक्षा लेना था घर में दूसरों का बोझ उठाता हैं।
दर-दर ठोकरें खा कर भी जब कार्य नज़र नहीं आता हैं ।।
जब बदहाली में जीवन हो और प्रश्न पेट बन जाता हैं।
पथ से विचलित होकर ब्यक्ति एक अपराघी बन जाता हैं।

    जब बीते गरीबी में जीवन और पैसा शत्रु बन जाता हैं।
    घर में मैया बीमार पड़ी नहीं खर्च वहन कर पाता हैं।
    जब भीषण आपदा आयी हो और संम्मुख मृत्यु को पाता हैं।
    सब नीति नियम को तोड़ ब्यक्ति एक अपराघी बन जाता हैं।

जब भूखें तड़प रही बहना धर में दाना नहीं होता हैं।
जिल्लत दुक्कार सहते-सहते जब अंत सब्र का होता हैं।
जब आगे बस अंधियारा हो और समय साथ न देता हैं।
पथ से विचलित होकर ब्यक्ति एक अपराघी बन जाता हैं।

12. विलासिता और आराम की जिंदगी-  आजकल लोग समाज में विलासिता और आराम की जिंदगी जीना चाहते है, जिसके लिए पैसा चाहिए। जल्दबाजी में पैसा कमाने के चाहत में लोग अपराध करने में जरा भी नहीं हिचकते। 

13. बेरोजगारी- आज देश के संम्मुख बहुत बड़ी समस्या बेरोजगारी और आर्थिक विषमता हैं। आजकल लोग पढ़ लिख कर भी बेरोजगार घूम रहे है। किसी भी सरकारी विभाग या गैर सरकारी विभाग में अगर एक भी कर्मचारी का भी फॉर्म निकलता है तो प्रतिभागियों की संख्या हजारों-हजारों में आती हैं इसका मुख्य कारण जनसंख्या बृद्धि हैं। पेट के लिए पैसो की तो सबको आवश्यकता हैं कई लोगों को जब कही शरण नहीं मिल पाता तो वे अपराध की दुनिया मे कदम बढ़ा लेते हैं।

                                      स्वरचित मौलिक
                चंद्रगुप्त नाथ तिवारी    
            बरजा आरा (भोजपुर) बिहार



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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Oct-2021 09:50 PM

बहुत बेहतरीन रचना

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सादर आभार

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बहुत ही बेहतरीन व समसामयिक रचना 👌👌👌👌🙏🙏

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हार्दिक आभार

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Niraj Pandey

19-Oct-2021 09:26 PM

बहुत ही बेहतरीन

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