Add To collaction

"कामिनी भाग 12

कामिनी ने कटार निकाल कर, मानक राव पर वार किया, तभी अचानक, रात्रि ने आकर, कामिनी का हाथ पकड़ा और कटार छुड़ाकर नीचे फेंकी और कहा

"तू पागल हो गई है क्या"? जिसे तू अपनी जान से ज्यादा चाहती है और जिसके लिए कुछ भी कर सकती है, उसी के प्राण हरना चाहती है"!

"हां,,,मैं इस धोखेबाज,बेवफा को जान से मार दूंगी,इसने मेरे विश्वास के साथ छल किया है, इसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है, इसने मेरे सच्चे प्रेम का अपमान कर, नपुंसक सन्यास धारण किया है"! कामिनी ने रोते हुए कहा

"तुम दोनों के बीच, प्रेम और सन्यास की जटिल पहेली उत्पन्न हो गई है, मुझे लगता है, इसका उपाय ब्रह्म ऋषि, सामाशन मुनि ही बता सकते हैं,वह दिव्यज्ञानी है, वह तुम्हें जरूर उचित मार्ग बताएंगे,हमें उनके पास चलना चाहिए"! रात्रि ने समझाते हुए कहा

"उन्होंने ही तो इसे यह नपुंसक, वस्त्र धारण कराए हैं, वह हमारी क्या सहायता करेंगे"? "रात्रि"!कामिनी ने कहा

"उनके पास,हर समस्या का समाधान है,वह बहुत ही नैतिकतावादी और सदा सत्य का अनुसरण करते हैं, वह तुम्हारे साथ भी अवश्य न्याय करेंगे,चलो"!

रात्रि की बात सुनकर कामिनी के हृदय में आशा की एक किरण जलती है और वह तीनों सामन मुनि के सामने आकर उन्हें एक साथ प्रणाम करते हैं

सामन मुनि ने उन तीनों की ओर देखा और कहां

"मैंने अपने दिव्यज्ञान से तुम्हारी दुविधा को समझ लिया है"!

"जब समझ लिया है तो एक स्त्री के हृदय की पीड़ा को भी अवश्य समझ लिया होगा, आपके सामने प्रेम से पीड़ित एक युवती खड़ी है, जिसका उसके प्रेमी ने सब कुछ हरण कर लिया है और छल से उसे समुद्र के मध्य में लाकर छोड़ दिया है, जिसे अब मृत्यु के अलावा,अपने जीवन का और कोई लक्ष्य नजर नहीं आ रहा है,वही स्त्री आपके सामने, न्याय के लिए खड़ी है,मेरे साथ उचित न्याय करें, मुनिवर"! कामिनी ने कहा

"प्रेम और सन्यास दोनों ही मुक्ति के मार्ग हैं,परंतु जैसे, मात्र गेरुआ रंग के वस्त्र धारण करने से संन्यास प्राप्त नहीं होता, उसी प्रकार, आसक्त प्रेम भी मुक्ति के मार्ग में बाधक हैं, तुम्हारा प्रेम लगाव ओर कामुक इच्छा से भरा, मदिरा का वह प्याला है,जिसे पीने के बाद, विवेक खो जाता है, किसी भी विवेकहीन मनुष्य का मुक्ति के मार्ग पर कोई स्थान नहीं है,इसीलिए तुम्हें, मेरा सुझाव है, तुम मानक राव के मुक्ति के मार्ग में बाधक न बनो"! सामन मुनि ने कहा

सामन मुनि के यह वाक्य सुनकर,कामिनी तिलमिला उठती है और क्रोध के आवेश में आकर रहती है

"अरे,,,राजा के पुत्र को सिंहासन शोभा देते हैं, पिंडी के आसन नहीं, वीरो के हाथों में धनुष शोभा देते हैं, भिक्षा के पात्र नहीं, मुनिवर आपने तो कमाल कर दिया है, जिसके भाग्य मे विधाता ने राजभोग लिखा है, उसे आपने, जंगल की ठोकरे और कांटों की चुभन दे दी है, विधाता ने जिस वीर को चक्रवर्ती सम्राट बनने का सामर्थ्य दिया है, आपने, उसके हाथों में भिक्षा का पात्र दे दिया है और उसका सिर मुंडवा कर, गेरुआ वस्त्र पहनाकर उसे नपुंसक बना दिया है"! कामिनी ने दृढ़ता से कहा

"पागल युवती,,,तू अपने मचलते यौवन के आवेश में आकर मुझे शिक्षा दे रही है,अगर तेरे योवन में इतनी शक्ति होती तो मानक राव, सन्यास धारण करने का सामर्थ्य नहीं जुटा पाता, तेरा यह गठीला यौवन तो चार दिन की चांदनी है, अपने इस क्षणभंगुर शरीर पर इतना गर्व न कर"! सामन मुनि ने कहा

मेरे योवन में इतना सामर्थ्य है,जो स्वर्ग के देवताओं और ब्रह्म ज्ञानियों के ध्यान को भंग कर सकता है, बस कोई मुझे अपने नेत्रों से ब्रह्मचर्य का अभिमान त्याग कर, एक बार स्नेहपूर्वक, देखे तो सही"!कामिनी ने इठलाते हुए कहा

"मूर्ख स्त्री, तूने आज मुक्ति के मार्ग को चुनौती दी है, तुझे अपने, सुंदर यौवन पर बहुत गर्व है, इसीलिए मैं, तुम्हें सूर्यास्त तक का समय देता हूं, अगर तूने, अपने योवन की शक्ति से मानक राव को तेरा कोमल शरीर छुने को विवश कर दिया तो माणकराव तेरा और अगर तू सूर्यास्त तक, ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो पाई तो तुझे, मुझसे क्षमा मांग कर,सन्यास धारण करना होगा"! सामन मुनि ने कहा

"मुझे आपकी चुनौती स्वीकार है"! कामिनी ने दृढ़ता पूर्वक कहा और अपने आंचल से साड़ी का पल्लू हटाकर, पूरी साड़ी निकाल कर फेंक दी, यह देखकर मानक राव ने आंखें बंद कर ली, काला ब्लाउज और काले घागरे में कामिनी का गोरा बदन,अंधेरे में रखें दीपक की तरह जगमगा रहा है

"मानक राव, अपनी आंखें खोलो"! सामन मुनि ने आदेश दिया

मानक राव ने आंखें खोली,फिर कामीनी ने नृत्य शुरू किया, वह नृत्य करने लगी और प्रेम पूर्वक कभी मानक राव के गालों को छुती तो कभी उसके हृदय को, कभी उसकी जांघों को छुती, तो कभी उसकी गर्दन को, कभी अपने होठों को मानकराव के होठों के पास ले जाती, तो कभी अपनी कमर को मानक राव के होठों से टकराती

कहते हैं, भंवरे फूलों के दीवाने होते हैं और लकड़ियों में छेद करने का सामर्थ्य भी रखते हैं पर फूलों की कोमल पंखुड़ियां को स्नेह के कारण, क्षतिग्रस्त नहीं करते, उन पंखुड़ियां में कैद होकर, प्राण त्याग देते हैं पर उन पर अतिक्रमण नहीं करते, कामिनी के स्पर्श से कई बार, मानक राव विचलित हुआ और उसने अपने हाथों की मुट्ठी कस कर बांधी पर कामिनी मानक राव को उस प्रकार प्रभावित नहीं कर पाई, जिसे शर्त में तय किया गया था, मानक राव अपने स्थान पर बैठा रहा, कामिनी उसे विचलित करने का प्रयास करती रही और करते-करते थक गई, सूर्यास्त भी हो गया, जैसे कामीनी नीचे गिरी, सामन मुनि ने कहा

"कल प्रातः काल, अपना सर मुंडवा कर, मुझसे दीक्षा लेने आ जाना"!

"मैं अपनी पराजय को स्वीकार करती हूं और आपके आदेश का पालन करने के लिए उत्सव उत्सुक हूं, पर है,,,करुणा के सागर, मेरी, आपसे एक प्रार्थना है"! कामिनी ने कहा

"नि-संकोच कहो,,,कामिनी, मुनिवर, उचित प्रार्थना को कभी अस्वीकार नहीं करते हैं"! मानकराव ने सामन मुनि के समर्थन में कहा

मुनिवर से मेरी प्रार्थना है. कि मैं कामपुर नगर में रहती हूं, वहां हजारों वैश्याए, वैश्यावृत्ति र कहती है, मैं उनकी युवराजी होने के नाते, अपने साथ, उनके जीवन का भी उद्धार करना चाहती हूं और उन्हें उस नर्क से बाहर निकलना चाहती हूं, इसलिए मेरी गुरुदेव से प्रार्थना है कि वह मेरे साथ, उन हजारों स्त्रियों को भी दीक्षा देकर मुक्ति का मार्ग दिखाएं"! कामिनी ने निवेदन किया

सामन मुनि ने कुछ विचार किया और कहा

"मैं अपने 1000 शिष्यों के साथ हिमालय भ्रमण करने जा रहा हूं, तब मैं अपने 1000 शिष्यों के साथ, तुम्हारे नगर से गुजरुगां, तब तुम्हारे साथ उन सभी, सन्यास की इच्छुक स्त्रियों को दीक्षा दूंगा, तथास्तु"! गुरुदेव ने कहा

"क्या सच में कामिनी सन्यास धारण करेंगी या यह उसका कोई षड्यंत्र है"?

"आखिर कामिनी पिशाचिनी कैसे बनी"?

अपने सभी द्वंद्व और प्रश्नो के उत्तर जानने के लिए पढ़ते रहिए, कामीनी एक अजीब दास्तां

   2
2 Comments

Gunjan Kamal

17-Nov-2023 05:50 PM

Aapne apne title me comma lga diya hai jis vajah se link group me proper way me NHI jaa rahi hai

Reply

Gunjan Kamal

17-Nov-2023 05:49 PM

👏👌

Reply