कविता
समाज का दर्पण है कविता,
उत्तम लक्ष्य निर्धारण कविता।
खूबियों का बने आईना,
सृजक का समर्पण है कविता।
शुभाशीष माँ सरस्वती का,
गीत प्रगीत भण्डार धरोहर।
रोती मानवता का वर्णन,
अभीष्ट सार चैतन्य मनोहर।
सिसकी जहां की हो परिलक्षित,
शब्दों में चराचर गढ़ जाए।
कह नहीं पाए जुबां जिसको,
कविता भावों में कह जाए।
गूढ़ रहस्य भावार्थ छिपे हैं,
शंकाएं सब हटती जाएं।
कवि की कविता भेद बताए,
चौहान विभेदन कर जाएं।
उम्मीदें जन-जन की कविता,
दीन दुखी की व्यथा लिख दे।
उपालंभ जख्मी का बनकर,
दारुण दुख का वर्णन कर दे।
रवि की गर्मी जहाँ न पहुंचे,
कविताएं तपन बढ़ा जाएं।
चांद अमावस में चमका दे,
संदेशे बादल भिजवाएं।
राघव की लीला सरयू तट,
कालिंदी कुंज गलिन लिख दे।
महिमा कर्म की भगवद्गीता,
जीवात्मा “श्री” संगम लिख दे।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Shashank मणि Yadava 'सनम'
17-Nov-2023 07:57 AM
बहुत ही सुंदर सृजन
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Reena yadav
16-Nov-2023 09:17 PM
👍👍
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Gunjan Kamal
16-Nov-2023 08:48 PM
👏👌
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