Sonia Jadhav

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अपराजिता

माँ जल्दी टिफिन दो मुझे देर हो रही है स्कूल के लिए।
बस 2 मिनट …. ला रही हूँ। आज तेरी मनपसंद मटर पनीर की सब्जी बनाई है इसलिए थोड़ी देर हो गयी। ये ले अपना टिफ़िन और हाँ ख्याल रखियो अपना……. 12वीं कक्षा के लड़कों से उलझने की जरूरत नहीं है। एक नंबर के छंटे हुए बदमाश हैं वो, दूर रह उनसे।

अच्छा माँ! अब बस करो ये भाषण सुबह-सुबह। मैं स्कूल जा रही हूँ। बाय माँ……..

जब से आरोही ने 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले लोकेश और नरेश की शिकायत की ही प्रिंसिपल मैडम से, तब से मुझे डर लगा रहता है….. कहीं वो कुछ आरोही के साथ गलत ना कर दे।

मेरी आरोही 11वीं कक्षा में पढ़ती है। एक दिन उसने लोकेश और नरेश को जबरदस्ती एक छोटी कक्षा के लड़के को सिगरेट पिलाते हुए देख लिया था आधी छुट्टी में प्लेग्राउंड में पीछे की तरफ, बस उसने जाकर सीधा प्रिंसिपल से जाकर उनकी शिकायत कर दी। देखा तो उसकी सहेलियों ने भी था, लेकिन सबने चुप्पी साध ली। आरोही की एक ही परेशानी है वो कुछ भी गलत होते हुए नहीं देख सकती। उसे किसी से डर नहीं लगता, वो समाज सुधारना चाहती है। लेकिन मुझे डर लगता है अपनी बेटी की बहादुरी से।

लोकेश और नरेश के खिलाफ किसी ने गवाही नहीं दी, वो लड़का भी मुकर गया जिसको जबरन दोनों ने सिगरेट पिलाने की कोशिश की थी। शायद सबको डर था उन दोनों से। लोकेश और नरेश जुड़वा भाई थे और पुलिस इंस्पेक्टर दिनेश सावंत के बेटे थे। प्रिंसिपल ने भी दोनों को कुछ कहा नहीं और चेतावनी देकर छोड़ दिया।

आरोही को प्रिंसिपल ने कुछ कहा नहीं, लेकिन एक दिन मुझे बुलाया था स्कूल में और आरोही को समझाने के लिए कहा, साथ ही हल्की सी चेतावनी भी कि आगे से ऐसा कुछ ना करे। वो लड़के बहुत खतरनाक है मिसेज़ शर्मा, आरोही का ध्यान रखें।

यह सब मैंने आरोही को नहीं बताया वरना वो फिर से प्रिंसिपल के ऑफिस पहुँच जाती । लगभग 3 महीने हो गए हैं इस बात को। उन लड़कों ने आरोही को कुछ नहीं कहा। लेकिन तब से हर दिन मुझे चिंता लगी रहती है उसकी।

आरोही स्कूल में…….

रेनू आरोही की दोस्त…….. आरोही चल ये नोट्स बाद में लिख लियो। चल उठ….. लंच ब्रेक की घंटी नहीं सुनी तू ने? ग्राउंड में चलते हैं लंच करने। सुबह से इतिहास की टीचर ने नोट्स लिखवा-लिखवा कर सिर और हाथ दोनों दर्द कर दिए हैं। टीचर्स थकती नहीं क्या सुबह से बोल-बोलकर?
 रेनू डियर यही बात टीचर्स हमारे बारे में भी कहती हैं। बात तो सही कही तू ने आरोही, हम छात्र कौन सा कम हैं।
रेनू और मैं ग्राउंड में बैठकर लंच कर रहे थे। सामने लोकेश और नरेश अपने दोस्तों के साथ बैठे बातें कर रहे थे। 

मुझे लगा शायद वो बीच-बीच में मुझे घूर रहे हैं। खैर उनकी तो रोज़ की आदत थी, किसी ना किसी लड़की को घूरना। माँ ने मुझे मना किया था वरना तो मैं उन्हें समझा देती अच्छे से।

खैर स्कूल खत्म होने के बाद मैं अपनी साइकिल पर घर के लिए निकल गयी। मेरे घर के करीब 1 किलोमीटर पहले की सड़क ज़्यादातर सुनसान सी रहती थी दोपहर के समय। सड़क के दोनों तरफ झाड़ियां  थी। रोज़ की तरह जल्दी-जल्दी साइकिल चलाती हुई मैं उस सड़क से गुजर रही थी कि पास की झाड़ियों से किसी लड़की की चीख सुनाई दी। मैंने साइकिल सड़क के किनारे खड़ी कर दी और देखने के लिए चली गई झाड़ियों में। लेकिन वहां कोई नहीं था। सामने नरेश और लोकेश खड़े मुस्कुरा रहे थे। उनके हाथ में मोबाइल था जिस पर किसी लड़की की चीख सुनाई दे रही थी, वो एक रिकार्डेड आवाज थी। मैं समझ गयी थी कि अब कुछ गलत होने वाला है। मैं अपनी साइकिल की तरफ भागी लेकिन उसके पहिए की हवा वो लोग निकाल चुके थे।

नरेश ने मेरे मुँह पर थप्पड़ मारा जोर से और झाड़ियों में खींचकर ले जाने लगा। मैं जोर से चिल्लाई……. देखो मुझे छोड़ दो वरना मैं पुलिस में शिकायत कर दूंगी। लोकेश ने जोर से मेरे बाल खींचे और मुझे जमीन पर धक्का देकर गिरा दिया।

लोकेश जरा इस आरोही को बता हमारा बाप कौन है……
नरेश कहने लगा……. आरोही बेबी कानून भी हमीं है और अपराधी भी हमीं हैं। लोकेश ये ले मोबाइल पकड़ और बढ़िया सा वीडियो निकाल……. सारा फोकस आरोही के चेहरे पर होना चाहिए, मेरी सिर्फ पीठ दिखनी चाहिये। मेरे मुंह में रुमाल ठूंस दिया गया था ताकि मेरी आवाज कोई सुन ना सके। ऐसा लग रहा था जैसे बदन में कोई कीलें ठोक रहा हो, आँखों से आंसू बहते जा रहे थे। लग रहा था जैसे पूरे शरीर पर किसी ने कीचड़ मल दियो हो। मुझे इतनी घिन्न आ रही थी कि मैं उल्टियां करने लग गयी और सारी उल्टी नरेश के मुँह पर हो गयी। नरेश झटके से मेरे ऊपर से उठ गया और मुझे गलियां देने लगा……. सारा मूड खराब कर दिया, छी…..

चल लोकेश चलते हैं यहाँ से, इसके लिए इतना सबक काफी है।

नहीं भाई ऐसे नहीं, थोड़ा सा सबक मुझे भी देना है।

पागल हो गया है उल्टी कर रही है वो। चेहरा देख उसका।

ये देख मैंने कपड़ा डाल दिया है चेहरे पर उसके और वैसे भी मुझे चेहरे से कोई लेना-देना नही है।
थोड़ी देर बाद ....चल भाई मेरा काम भी हो गया, अब चलते है यहाँ से।
इसका क्या करें? पड़े रहने देते हैं, वैसे भी इसके साथ जो हुआ है वो बहुत है इसके लिए। इस दर्द के साथ जियेगी या थाने के चक्कर काटेगी?

आरोही के घर पर…….

आरोही क्यों नहीं आयी अभी तक 3 बज गए हैं, रोज़ 2 बजे तक घर आ जाती है। आरोही के पापा को फोन करती हूँ।
तब तक आरोही के पापा का फोन आ गया…… जल्दी से तुम सिटी हॉस्पिटल पहुंचो। 

क्या हुआ….. बिना कुछ जवाब दिए ही फोन काट दिया। मैं आनन फानन में कैसे तो हॉस्पिटल पहुंची। आरोही के पापा ने जोरों से मेरा हाथ पकड़ा और रोने लगे।
क्या हुआ आरोही को? वो ठीक तो है और यह पुलिस क्यों है यहाँ पर?
आरोही का गैंगरेप हुआ है…. यह कहते-कहते वो बेतहाशा रोने लगे। मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या प्रतिक्रिया दूँ? ऐसा लग रहा था जैसे आवाज गले में ही रुँध गयी हो, गले में दर्द होने लगा था बड़ा तेज़, बस आँखों से आंसू बहते जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से आरोही के पापा से पूछा ......आरोही कहाँ है?

वो बोले ऑपरेशन थिएटर में है, उसे अंदरूनी चोटें आई हैं, खून नहीं रुक रहा था उसका। शायद खून चढ़ाना पड़े।

एक दिन बाद आरोही को होश आया। उसका गोरा रंग काला स्याह पड़ चुका था, आंखें धस चुकी थी, शरीर पर, चेहरे पर निशान थे उनकी हैवानियत के।

आरोही मुझे देखते ही गले से लिपट गयी। बार-बार सॉरी माँ कहने लगी। 

तेरी कोई गलती नहीं है आरोही, सॉरी बोलना बंद कर। यह सब कैसे हुआ बेटा…… आरोही ने सब कुछ मुझे कह सुनाया।
माँ उन्होंने मेरा वीडियो बना लिया है और धमकी दी है कि शिकायत की तो वीडियो वायरल कर देंगे।
मैं पुलिस अंकल को कुछ नहीं बताउंगी माँ, वरना सबको पता चल जायेगा मेरे साथ क्या हुआ है? 

मेरी बेटी के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था, जिससे वो कभी उबर भी पायेगी कि नहीं।
आरोही के लिए मुझे मजबूत होना होगा। मैं कमजोर पड़ गयी तो वो जिंदगी में कभी आगे नहीं बड़ पायेगी।

आरोही देख बेटा इसमें तेरी कोई गलती नहीं है। गन्दी तू नहीं वो लोग गंदे हैं। मैं और पापा तेरे साथ हैं, कुछ नहीं होने देंगे तुझे। तू तो मेरी बहादुर बेटी है ना, पुलिस अंकल को सब सच बता देना। जब तू ने कुछ गलत नहीं किया तो फिर शर्मिंदगी कैसी।

आरोही ने पुलिस को बता दिया सब कुछ और नरेश, लोकेश पकड़े भी गए। उन्हें बाल सुधार गृह भेज दिया गया उनकी कम उम्र के कारण। उनके पिता ने पूरा सहयोग दिया जांच में और कई बार माफ़ी भी मांगी।

हर रात उसका नींद में डरकर चीखना और फिर रात भर बिस्तर के एक कोने में दुबककर बैठ जाना। उस कोने से आती उसकी सिसकियों की आवाज़ डराने लगी थी मुझे। मैं अपनी बेटी को और लड़कियों की तरह खुश देखना चाहती थी। आरोही के लिए जितना मुश्किल था इस हादसे को भुलाना, उतना ही मुश्किल था मेरे लिए आरोही को उस हादसे से बाहर निकालना।
आरोही को साल लग गया सामान्य होने में। मैं हर सप्ताह उसे काउंसलिंग के लिए ले जाती थी ताकि उसके मन से इस हादसे का दर्द मिट सके। 
साथ ही साथ उसको प्राइवेट स्कूल से 12वीं के पेपर भी दिलवा दिए थे। 
मैं हमेशा उसे एक ही बात समझाती थी कि एक शिक्षा ही है जो सब कुछ बदलने की ताकत रखती है, इसलिए उसने पढ़ना नहीं छोड़ा। अब उसका एक ही सपना है बलात्कार से पीड़ित लड़कियों के लिए लड़ने का और मेरा भी।

मेरी बेटी और मेरे परिवार के लिए इस हादसे को भुलाना इतना आसान नहीं है। लेकिन मैंने भी ठान लिया है……. ना मैं खुद हारूँगी ना अपनी बेटी को हारने दूंगी।

❤सोनिया जाधव
#लेखनी
#लेखनी कहानी
#लेखनी कहानी सफर

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5 Comments

madhura

23-Jul-2023 09:58 AM

Awesome

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Khushi jha

26-Oct-2021 12:17 AM

बेहतरीन

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Swati chourasia

21-Oct-2021 08:38 PM

😔😔😔😔😔😔

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