Rajeev kumar

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नया संघर्ष

नया संघर्ष

ऐसे तो गणपत राय शांत स्वभाव के व्यक्तित्व के धनी थे। सीधे, सरल स्वभाव के गुण के कारण अक्सर उनके विरोधी उनसे उपर ही रहते। किसी-किसी दिन कम बात करना और किसी-किसी दिन बिल्कूल भी बात न करना, उनका यह गुण, काम-धाम छोड़ कर गप्पें लड़़ाने वालों को खलता रहता था।
चुप रह कर या कम बोेल कर,  वोे अपने घर-परिवार के बारे में सोचते नहीं रहते थे बल्कि उनका सारा समर्पण अपने काम पर ही होता था।
कार्यकुशल ताो इतने थे कि लगभग हर कार्य के बारे में उनको  ज्ञान था। प्र्रमाण पत्र वाला ज्ञान नहीं  बल्कि कार्यकारी ज्ञान।ं कई बार सरसरी निगाह डालकर गणपत राय जी ने अपनेे सहपाठीयों के कार्य का थोड़ा बहुत ज्ञान ले रखा था। उनका यह गुण उनकेे लिए कभी-कभी बड़ा सिर दर्द उत्पन्न कर देता, जिसके कारण उनको खिज  भी उत्पन्न होती थी।
चपरासी को अपनी तरफ आते देख गणपत राय  जी ने अपना चेहरा दुसरी तरफ घुुमा लिया था, उनकी ललाट  पर गहरा गया शिकन, उनकी व्यस्तता को दर्शा रहा था और काम में आए किसी उलझन को भी ब्यां कर रहा था।
चपरासी कुछ देर उनको गौर से निहारनेे केे बाद बोला ’’ आपको साहब ने बुलाया है। ’’ इससे पहले कि चपरासी उनकी मनोदशा को भांप पाता, झट से लम्बी डेग भर कर वो अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गया।
कैबिन में प्रवेश करते ही मैनेेजर साहब ने पुछा ’’ कैसे हैं गणपत बाबू ? आइए बैठिए न। ’’
गणपत राय  के जेहन में आ गया कि काम का अतिरिक्त बोझ डालना चाहते हैं, क्योंकि ऐसी ही परिस्थिति में मैनेजर  साहब इस तरह का व्यवहार करते हैं।  और गणपत राय को अंदाजा सौ प्रतिशत सही भी हुआ।
मैनेजर साहब ने कहा ’’ अपने जफर मियां है न। ’’
गणपत राय ने हाँ में सिर हिला कर कहा ’’ हाँ, हैं न। क्यों क्या हुआ ?  ’’
मैनेजर साहब ने चेहरे पर कुटील मुस्कान लाकर कहा ’’ जी हुआ तो कुछ नहीं, आज उनका बच्चा बीमार है,  नहीं आए हैं, आप थोड़ी देर रूक कर उनका भी काम सम्भाल दीजिएगा, प्लीज, और हाँ, उनका आज तक का काम खत्म करके ही जाने की कोशिश कीजिएगा। ’’
मैनेजर साहब की बात तो खत्म हो चुकी थी, मगर गणपत राय जी का तीलमिलाना शुरू हो चुका था। खैर जैसे-तैसे उन्होंनेे अपना और जफ़र मियां का उस दिन का काम खत्म किया।
गणपत राय जी थके-हारे घर पहुचे, दरवाजा तो उनकी धर्मपत्नी ने खोला और थोड़ा रूखा बोला ’’ सब्जि क्यों  नहीं लाया, आज क्या बनाउं, इंतजार में रोटियां हीं पहले पका दी। ’’
’’ अरे तो निरंजन को ही  बोल देती, मेरा इंतजार करने की क्या जरूरत थी  ? ’’ गणपत राय जी ने खिज कर कहा।
’’ अरे वो सुने तब तो।’’ इस बार धर्मपत्नी जी ने अपनी आवाज को भारी-भरकम कर  कहा।
गणपत राय जी थैला लेकर बाजार की तरफ दौड़े।ं रास्ते भर उनके मन में यही चलता रहा कि कोल्हु के बैल की तरह काम करते रहो।
अगले दिन गणपत राय जी ने मैनेजर  साहब की कैबिन में दाखिल होते ही कहा ’’ सर, आज टिफीन के बाद मैं घर चला जाउंगा, पत्नी को डाॅक्टर के पास ले जाना है। अस्पताल में भीड़ बहुत लगती है। चार-पाँच घंटा पहले लाईन नहींे लगाया तो दिखा भी नहीं पाउंगा। ’’
मैनेजर साहब ने फाईल में अपनी नज़र गड़ाए ही कहा ’’ हाँ हाँ, चले जाना। ’’
आशवस्त हाो गणपत राय जी अपने काम में व्यस्त हो गए, काम भी करते रहे और  और भगवान से भी मनातेे रहे कि कोई और आज छुट्टी न मांग ले वरणा मेरी छुट्टी पर ग्रहण लग  सकता है।
चपरासी को अपनी तरफ आता हुआ देखकर उन्होंनेे एकटक उसकी तरफ देखना नहीं छोड़ा। चपरासी ने कहा ’’ आज आपकी आधे दिन की छुट्टी कैंसिल, मैनेजर साहब ने यह कहने को कहा और अपने कैबिन से बाहर निकल गए। ’’
गणपत राय जी ने कैबिन में झांका, मैनेजर साहब सचमूच में नहीं थे। गणपत राय जी सिर से पांव तक तिलमिला गए।
लंच बाॅक्स भी नहीं लाए थे, जेब टटोला मगर एक पैसा भी न मिलना उनको और गुस्सा कर गया।
आज गणपत राय जी को अपने सहपाठी नरेश की बात याद आ रही थी,  जो छुट्टी मारने केे बाद खबर करता है।
उधार का खाना खाते हुए उनको धर्मपत्नी के हाथ की पीसी धनिया पŸाा की चटनी और मुंग के पकौड़े की याद आ रही थी साथ ही उनको आभाष भी हो रहा था  गुस्से से लाल धर्मपत्नी की आँखें।

समाप्त

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6 Comments

Rupesh Kumar

18-Dec-2023 07:34 PM

Nice

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Khushbu

18-Dec-2023 05:13 PM

Nyc

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Shnaya

17-Dec-2023 02:27 PM

Nice

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