Anju singh

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बुढ़ापा




प्रतियोगिता - बुढ़ापा


 ये काया आज जितनी ही खूबसूरत दिखती, 
कल को ये काया बदल कर बुढ़ापे में बदल जानी। 
फिर क्यो घमंड इस काया का 
आज जवानी तो कल बुढापे में ढल जानी। 
माना नहीं है इसका कोई एक सच्चा रुप, 
क्योंकि जवानी से बुढ़ापा और बुढ़ापे से मिट्टी में ही मिल जानी। 
ऐ जिंदगी तू तू ना कर इस काया पर इतना घमंड ,
जो है तेरे पास उसी में खुशी से रहना सीख ले। 
शुक्र कर उस का की तेरी काया तेरे को जैसी मिली अच्छी मिली, 
जब ये काया बुढापे में बदल जाएगी तो आधे रिश्ते ऐसे ही छोड़ कर चले जाएगे। 
बुढ़ापे की मार झेल कर भी यदि तू खुश हैं तो समझ लेना जिंदगी असली तूने ही जानी, 
हर कोई बुढ़ापे की काया से दूर हो रहा है। 
पर वो भूल जाता है इंसान वो भी है, 
ये बुढ़ापा तो सब पर ही आना हैं, 
कोई खुशी से अपना कर उसमे शांति से जी लेता है, 
तो कोई बुढ़ापे को बोझ समझ कर परेशान हो जाता है। 
ऐ इंसान ये ज़रूरी तो नहीं हर वक्त एक जैसा हो 
फिर भी हर हाल में जीना सिखना ही जिंदगी हैं। 
बुढापा देख कर तू मत घबरा बुढ़ापा कोई बोझ नही है, 
ये तो वो अनुभवों का पिटारा है जो पूरी ज़िन्दगी के बाद ही हमे मिलता हैं। 
इस अनुभव को बाट कर तो देख कितने की जिंदगी सुधर जाएगी। 
ये बुढापा भी ऐसे ही नहीं आता कोई इस को अपना जीवन अनमोल मान कर जी जाता है, 
तो कोई जिंदगी जीना छोड़ देता है। 
ये काया बदल जानी है आज जवानी तो कल बुढ़ापे में ढल जानी है।


स्वरचित -अंजू सिहं दिल्ली

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3 Comments

Gunjan Kamal

20-Nov-2023 05:13 PM

👏🏻👌

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बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Reena yadav

20-Nov-2023 06:46 AM

👍👍

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