अवसाद
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन (अवसाद) सहित अन्य मानसिक बीमारियों के शिकार हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में काम करने वाले लगभग 42 प्रतिशत कर्मचारी डिप्रेशन और एंग्जाइटी (व्यग्रता) से पीड़ित हैं। डिप्रेशन और अकेलापन भारत सहित पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है और इसे केवल समाज की जिम्मेदारी मानकर नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अकेलेपन में घिरा हुआ व्यक्ति स्वयं अपने विनाश का कारण बन जाता है, वह जीवन के बारे में न सोच कर, मृत्यु के बारे में सोचने लगता है। अकेलेपन का शिकार व्यक्ति जीवन भर परेशान रहता है और उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर के युवाओं की मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है और इसका सबसे बड़ा कारण अकेलापन ही है। यूं तो अकेलापन कहने को केवल एक शब्द है, लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, किंतु हाल की स्थितियों को देखते हुए दुनिया भर के देशों ने अब इसे गंभीरता पूर्वक लेना शुरू कर दिया है।
अकेलेपन का शिकार केवल वही व्यक्ति नहीं होते, जो समाज में अकेले रह रहे हों, बल्कि इसका शिकार कई बार ऐसे व्यक्ति भी होते हैं, जो भरे-पूरे परिवार, सगे-संबंधियों और मित्रों से घिरे हुए हों और इसके बावजूद स्वयं को अकेला अनुभव करते हों। रिपोर्टों से पता चला है कि कुंवारों की अपेक्षा शादीशुदा लोगों में अकेलेपन की समस्या 60 प्रतिशत तक ज्यादा होती है। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की एक रिसर्च के मुताबिक, अकेलेपन की वजह से एक व्यक्ति की उम्र तेजी से घटती है और यह उतना ही खतरनाक है जितना कि एक दिन में 15 सिगरेट पीना। बड़ी-बड़ी समस्याओं से घिरे हुए व्यक्ति अक्सर अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं, महामारियों और युद्ध के समय भी लोगों के जीवन में अकेलेपन की असुरक्षा बढ़ जाती है। कोरोना काल में और विशेषकर लॉकडाउन के समय सभी ने इस अकेलेपन को महसूस किया, इस अवधि में लोगों के व्यवहार में अनेक बदलाव आए, उनमें गुस्सा, निराशा और घुटन बढ़ गई, ये भावनाएं ही व्यक्ति को अकेलेपन के अंधेरे में धकेल देती हैं।
अकेलेपन और एकांत में बहुत फर्क है, अकेलापन मन की वह अवस्था है, जिसे हम मानसिक बीमारी कह सकते हैं। जबकि एकांत व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास की अवस्था है। एकांत सृजन की जरूरत है, किंतु अकेलापन विनाश का कारण बनता है। हाल ही में जापान ने अकेलेपन को दूर करने के लिए एक मंत्रालय का गठन किया है, इसका नाम है 'मिनिस्ट्री ऑफ लोनलीनेस', वैसे तो जापानी लोग कर्मठ व ईमानदार माने जाते हैं, लेकिन अकेलापन उन्हें अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है। जापान की जनसंख्या साढ़े बारह करोड़ है, इसमें करीब 63 लाख बुजुर्ग हैं और छह करोड़ से ज्यादा युवा हैं, यानी कुल जनसंख्या में पांच प्रतिशत बुजुर्ग हैं और पचास प्रतिशत युवा हैं। ये बुजुर्ग ही जापान की चिंता का विषय हैं, क्योंकि इनके पास इनके अकेलेपन को दूर करने के लिए कोई साथी नहीं रहता। लोग अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए रोबोट डॉग और रोबोट फ्रेंड्स का सहारा लेते हैं, किंतु उन्हें किसी जीवित साथी का साथ मुहैया नहीं होता।
अवसाद
ऐसे में वर्ष 2020 में आत्महत्या के आंकड़ों को देखकर वहां की सरकार परेशान है। वर्ष 2020 में आत्महत्या के आंकड़े 2019 की अपेक्षा करीब चार प्रतिशत बढ़ गए, यानी वहां हर एक लाख नागरिकों में से 16 नागरिक आत्महत्या कर रहे थे और जांच में पाया गया कि इसकी सबसे बड़ी वजह अकेलापन है, तब वहां की सरकार ने इस मंत्रालय का गठन किया। वर्ष 2018 में ब्रिटेन ने भी इस प्रकार का एक मंत्रालय बनाया था, किंतु दो साल बाद पता चला कि इस मंत्रालय से ब्रिटेन के लोगों को कोई फायदा नहीं पहुंचा है। क्या अब समय आ गया है कि भारत में भी अकेलेपन के लिए एक मंत्रालय बनाया जाए, जैसे जापान में बनाया गया है, क्योंकि आत्महत्या जैसी गंभीर समस्या अब एक महामारी का रूप लेती जा रही है, जो देश के साथ-साथ पूरी दुनिया में फैल रही है।
Niraj Pandey
09-Oct-2021 05:19 PM
बहुत खूब👌
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Angela
02-Oct-2021 01:02 PM
Contemporary thought. The need of the hour. Brilliant message 👏👏👏👏👏
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Shalini Sharma
29-Sep-2021 12:12 PM
Nice
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