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पूर्णिका




पूर्णिका

धरती पर इंसान ही ,भगवान होता है ।
ईश्वरत्व ही उसका सदा, ईमान होता है ।

लेता किसी से कुछ नहीं , निस्वार्थ रहता है,
देना ही उसका धर्म, व काम होता है ।

सदा सत पालता वह, बढ़ता दिखे आगे ।
धर्म मजहब त्याग कर,बस इंसान होता है ।

ऊंच नींच भेद भूल ,वृक्ष सा रहता सदा ,
समतामूलक भाव पाले,यही अरमान होता है ।

मोह माया व्यापे नहीं, खिलता कमल सा ,
पलता है कीचड़ में पनपता,
स्वच्छ संज्ञान होता है ।

प्रेम करूणा व दया का क्षीरसागर सा ,
चोरी चुगली छल कपट से,
सदा अंजान होता है।

स्वरचित व मौलिक
डा आर बी पटेल अनजान
छतरपुर म प्र




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2 Comments

Gunjan Kamal

08-Dec-2023 08:28 PM

👏👌

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सुन्दर सृजन

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