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पूर्णिका





पूर्णिका

 सूखे पत्तों की तरह हम एक दिन गिर जाएंगे। पंच तत्वों से बने हम इन्हीं में मिल जाएंगे ।

 विश्वास हमको है धरा में फिर यहीं आना ।
फिर बनेंगे जीवधारी फिर यहीं खो जाएंगे ।

 प्रकृति का यह चक्र देखो जो सतत चलता रहे कुछ को आना है यहां तो कुछ ढल जाएंगे।

सत्य सार्थक है नियम यह जो सभी पर ही चले आना जाना है जगत में कैसे सदा रह पाएंगे।

 अनजान प्राणी जानकर भी इसे ही अपना कहे 
चार दिन की चांदनी यह पत्तों सा ही ढह जाएंगे 

स्वरचित 
डॉक्टर आर बी पटेल अनजान 
छतरपुर मध्य प्रदेश।




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2 Comments

Gunjan Kamal

08-Dec-2023 08:28 PM

👏👌

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सुन्दर सृजन

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