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बेबसी

बेबसी में जिए जा रहा आदमी।

जहर हँसकर पिए जा रहा आदमी।

इस कदर बढ़ रहीं बेसबब ख्वाहिशें, 
ख्वाब को ख्वाब में जी रहा आदमी।

भटकता फिर रहा चैन की चाह में,
ओस की बूंद से जल रहा आदमी।

चमकते जुगनुओं की सहर देखिए,
चाँदनी से झुलसता रहा आदमी।

दिल मसीहा इबादत तरसता रहा,
ख़ुद व ख़ुद से जुदा हो रहा आदमी।

भूल जाएँ तुझे ये कठिन है बहुत,
शब-ए-गम में सिहरता रहा आदमी।

रोज सजती रहीं महफिलें गज़ल की,
इक कफ़न ओढ़कर सो रहा आदमी।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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16 Comments

Rupesh Kumar

28-Dec-2023 08:55 PM

बहुत खूब

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Reyaan

28-Dec-2023 08:35 PM

V nice

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Shnaya

28-Dec-2023 07:51 PM

Nice one

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