कंकाल-अध्याय -७६
गाला के सामने अन्धकार ने परदा खींच दिया। तब वह घबराकर उठ खड़ी हुई। इतने में कम्बल और सन्दूक सिर पर धरे नये वहाँ पहुँचा। गाला ने कहा, 'तुम आ गये।'
'हाँ चलो, बहुत दूर चलना है।'
दोनों चले, भालू भी पीछे-पीछे था।
जज के साथ पाँच जूरी बैठे थे। सरकारी वकील ने अपना वक्तव्य समाप्त करते हुए कहा, 'जूरी सज्जनों से मेरी प्रार्थना है कि अपना मत देते हुए वे इस बात का ध्यान रखें कि वे लोग हत्या जैसे एक भीषण अपराध पर अपना मत दे रहे हैं। स्त्री साधारणतः मनुष्य की दया को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है, फिर जबकि उसके साथ उसकी स्त्री जाति की मर्यादा का प्रश्न भी लग जाता हो। तब यह बड़े साहस का काम है कि न्याय की पूरी सहायता हो। समाज में हत्या का रोग बहुत जल्द फैल सकता है, यदि अपराधी इस...'
जज ने वक्तव्य समाप्त करके का संकेत किया। सरकारी वकील ने केवल-'अच्छा तो आप लोग शान्त हृदय से अपराध के गुरुत्व को देखकर न्याय करने में सहायता दीजिए।' कहकर वक्तव्य समाप्त किया।
जज ने जूरियों को सम्बोधन करके कहा, 'सज्जनो, यह एक हत्या का अभियोग है, जिसमें नवाब नाम का मनुष्य वृंदावन के समीप यमुना के किनारे मारा गया। इसमें तो संदेह नहीं कि वह मारा गया-डॉक्टर कहता है कि गला घोंटने और सिर फोड़ने से उसकी मृत्यु हुई। गवाह कहते हैं-जब हम लोगों ने देखा तो यह यमुना उस मृत व्यक्ति पर झुकी हुई थी; पर यह कोई नहीं कहता कि मैंने उसे मारते हुए देखा। यमुना कहती है कि स्त्री की मर्यादा नष्ट करने जाकर नवाब मारा गया; पर सरकारी वकील का कहना बिल्कुल निरर्थक है कि उसने मारना स्वीकार किया है। यमुना के वाक्यों से यह अर्थ कदापि नहीं निकाला जा सकता। इस विशेष बात को समझा देना आवश्यक था। यह दूसरी बात है कि वह स्त्री अपनी मर्यादा के लिए हत्या कर सकती है या नहीं; यद्यपि नियम इसके लिए बहुत स्पस्ट है। विचार करते समय आप लोग इन बातों का ध्यान रखेंगे। अब आप लोग एकान्त में जा सकते हैं।'
जूरी लोग एक कमरे में जा बैठे। यमुना निर्भीक होकर जज का मुँह देख रही थी। न्यायालय में दर्शक बहुत थे। उस भीड़ में मंगल, निरंजन इत्यादि भी थे। सहसा द्वार पर हलचल हुई, कोई भीतर घुसना चाहता था, रक्षियों ने शान्ति की घोषणा की। जूरी लोग आये।
दो ने कहा, 'हम लोग यमुना को हत्या का अपराधी समझते हैं; पर दण्ड इसे कम दिया जाय।' जज ने मुस्करा दिया।
अन्य तीन सज्जनों ने कहा, 'प्रमाण अभियोग के लिए पर्याप्त नहीं हैं।' अभी वे पूरी कहने नहीं पाये थे कि एक लम्बा, चौड़ा, दाड़ी-मूँछ वाला युवक, कम्बल बगल में दबाये, कितने ही को धक्का देता जज की कुरसी की बगल वाली खिड़की से कब घुस आया, यह किसी ने नहीं देखा। वह सरकारी वकील के पास आकर बोला, 'मै हूँ हत्यारा! मुझको फाँसी दो। यह स्त्री निरपराध है।'
जज ने चपरासियों की ओर देखा। पेशकार ने कहा, 'पागलों को भी तुम नहीं रोकते! ऊँघते रहते हो क्या
इसी गड़बड़ी में बाकी तीन जूरी सज्जनों ने अपना वक्तव्य पूरा किया, 'हम लोग यमुना को निरपराध समझते हैं।'
उधर वह पागल भीड़ में से निकला जा रहा था। उसका कुत्ता भौंककर हल्ला मचा रहा था। इसी बीच में जज ने कहा, 'हम तीन जूरियों से सहमत होते हुए यमुना को छोड़ देते हैं।'
एक हलचल मच गयी। मंगल और निरंजन-जो अब तक दुश्चिन्ता और स्नेह से कमरे से बाहर थे-यमुना के समीप आये। वह रोने लगी। उसने मंगल से कहा, 'मैं नहीं चल सकती।' मंगल मन-ही-मन कट गया। निरंजन उसे सान्तवा देकर आश्रम तक ले आया
एक वकील साहब कहने लगे, 'क्यों जी, मैंने तो समझा था कि पागलपन भी एक दिल्लगी है; यह तो प्राणों से भी खिलवाड़ है।'
दूसरे ने कहा, 'यह भी तो पागलपन है, जो पागल से भी बुद्धिमानी की आशा तुम रखते हो!'