अभिमान
अभिमान
एक दिन समुद्र को खुद पर अभिमान हुआ
सोचा यहां कौन है जो मुझ सा महान हुआ
मेरे आगे नतमस्तक सारा जहान हुआ
मुझ से मांग रहा था रास्ता पालनहार भी
मेरी शक्ति के सामने विधाता भी झुक गया था
भला इस से भी बढ़कर क्या कोई सम्मान होगा
इस जगत में क्या कोई मुझ सा विशाल होगा।
तभी एक तिनका उछल के उसके वक्ष पर आ धमका
लगा रह रह के लहरों को सताने करके अठखेलियां
उसकी इन हरकतों पर समुद्र को गुस्सा बहुत आया
उसकी शैतानियां देख कर वो तमतमाया
ठहर तुझे अभी देखता हूं, तेरी हस्ती को पल में मेटता हूं।
बहुत की कोशिश पर फिर हार मानी,
तिनके की जारी रही मनमानी
जब देखा उसने सागर को शांत होते
बोला सिंधु हो विशाल तुम पर तुमने है दंभ पाला
करो याद वो पल जब रामजी ने था धनुष संभाला
और सुखाने का तुमको था मन में भाव पाला।
जरा सोच देखो दंभ किसका फला है
विधाता के आगे जोर किसका चला है
वो चाहे तो पर्वत को क्षण में मिटा दे
हो उसकी मर्जी उंगली पे सबको नचा दे
अपनी क्षमताओं पे ना कभी अभिमान करना
वोही एक है जो सबको चलाता
वो एक है पूरे ब्रह्मांड का भाग्य विधाता।।
आभार – नवीन पहल –०३.०१.२०२४🌹👍💐🙏🏻
# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता
Shnaya
10-Jan-2024 02:25 PM
Nice
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Gunjan Kamal
08-Jan-2024 08:43 PM
👏👌
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Rupesh Kumar
07-Jan-2024 09:47 PM
Nice
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