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कौन




कौन 
कहता है 
के तन्हा 
हूँ मैं,

तेरी 
यादों का
टूटा हुआ 
लम्हा हूँ मैं।

एक चिंगारी 
बनी मेरी 
तबाही 
का सबब,

उसी 
जनून का
वो 
हादसा हूँ मैं।

अंधेरों में 
न मिटा 
मेरी 
यादों के अक्स,

एक ख़्याल 
सही,
पर एक 
चेहरा हूँ मैं।

क्यों पत्थरोँ से 
बनाते हो 
पानी पे 
सलवटें,

ख़ामोश 
झील की 
तरहां ठहरा हूँ मैं।

तेरे 
सहलाने से,
टीसें 
कम न होंगी,

इंतहा 
तक ही 
ज़ख्म गहरा हूँ मैं।

बदल बदल के 
चेहरे
न डराओ मुझे,

ख़ुद 
अपने आप से
ही डरा हूँ मैं।

एक ठूंठ 
समझ के
जला मत देना,

अभी 
अंदर तक
 'शीतल 'हरा हूँ मैं।

मेरी फ़ीकी 
चमक 
पे शुबहा किसलिए,

परख के
तो देखो,
सोना खरा हूँ मैं।

चेहरे से
अंदाज़ा मत
लगाइये,

भीतर तक
दरदों से
भरा हूँ मैं,

तमाशबीनों
की दुनियां
में,
किसी ने छू
कर भी न
देखा,

बस एक 
लोथड़ा
समझ लिया,

देखा भी
नहीं ज़िंदा हूँ
या मरा हूँ मैं

कभी तन्हा
रातों में 
बुला कर तो देखो,

एक खूबसूरत
ख़्याल,एक
ख़्वाब सुनहरा हूं मैं ।।


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4 Comments

Alka jain

17-Jan-2024 04:33 PM

Nice

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Gunjan Kamal

08-Jan-2024 08:33 PM

👏👌

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Rupesh Kumar

07-Jan-2024 09:57 PM

Nice

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