फ़र्ज़.
आज दिनांक २.१.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति;
................,फ़र्ज़................
हर मानव की मानवता औरअलंकार है फ़र्ज़,
अपना हर फ़र्ज़ निभाने वाले को नाम है मानवता मे दर्ज़।
हर व्यक्ति की ज़बान पर रहता " उसने हर फ़र्ज़ निभाया है।"
अति कठिन परिस्थितियों से भी वो न कभी घबराया है।
दीन-दुखी का सहायक बनता ख़ुद भूखा भी सो जाता,
मगर भूखा भी रह कर के उसने जीवन मे अति सुख पाया है।
अपने से बड़ों का आदर करना वह न कभी भी भूला है,
अपना फ़र्ज़ निभाने ख़ातिर वह निज स्वार्थ भी भूला है।
किसी नियम का पालन करना होता है आसान नहीं,
लोभ,मोह,लालच को तजना होता है कभी सुलभ नहीं।
मगर कुछ दिन कर के तो देखो,कितना सुकून भी मिलता है,
अपना फ़र्ज़ निभा कर देखो, अद्भुत साहस मिलता है।
कुछ दिन नियन्त्रण करो निज मन पर फ़िर स्वयं नियन्त्रित होता है,
लोभ-मोह-लालच की बातों से दूर दूर मन रहताहै।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Reyaan
17-Jan-2024 11:42 PM
V nice
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Gunjan Kamal
08-Jan-2024 08:32 PM
👏👌
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Rupesh Kumar
07-Jan-2024 09:58 PM
Nice
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