ब्रह्मा की सृष्टि
ब्रह्मा की सृष्टि
यह ब्रह्मा की सृष्टि निराली,
कितनी प्यारी-प्यारी है।
विविध पुष्प सम विविध जीव से-
सजी अवनि की क्यारी है।।
कुछ जल में,कुछ थल में,नभ में,
सबका रूप निराला है।
कोई काला,कोई गोरा,
कोई भूरे वाला है।
बोली-भाषा में है अंतर-
यही सृष्टि बलिहारी है।।
सजी अवनि की क्यारी है।।
उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम,
हर दिशि परम सुगंधित है।
सुघर संस्कृति-कला-सृष्टि यह,
जीवन-स्वर-संबंधित है।
ब्रह्मा की यह अनुपम रचना-
उपयोगी-हितकारी है।।
सजी अवनि की क्यारी है।
पर्वत-नदी और वन-उपवन,
बहते झरने झर-झर जो।
पंछी के कलरव अति सुखमय,
बहे पवन भी सर-सर जो।
प्रकृति सृष्टि की शोभा बनकर-
पुनि बनती उपकारी है।।
सजी अवनि की क्यारी है।।
बहती रहे सृष्टि की धारा,
यह प्रयास नित करना है।
इससे हम हैं,हमसे यह है,
यही भाव बस रखना है।
हर प्राणी की रक्षा करना-
यही ध्येय सुखकारी है।।
सजी अवनि की क्यारी है।
ऊपर गगन,समंदर नीचे,
दोनों रँग में एका है।
ममता-समता-प्रेम-परस्पर,
एक सूत्र का ठेका है।
प्रकृति-पुरुष-संयोग-सृष्टि यह-
ब्रह्मा की फुलवारी है।
सजी अवनि की क्यारी है,
कितनी प्यारी-प्यारी है।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
Shnaya
10-Jan-2024 02:37 PM
Nice
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Gunjan Kamal
08-Jan-2024 08:28 PM
👏👌
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नंदिता राय
06-Jan-2024 09:29 AM
Nice one
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