दस्तक
दस्तक
कई बार दस्तक दी ए वक्त
सुन न पाया
नींद की मदहोशी में था
खामोश थी आहट तेरी
होश में आ बहुत रोया था
गलतफहमी में सोचा
मौत की होगी दस्तक
आंख खुली तो देखा
रोशनी ही रोशनी थी हर तरफ
समझा, कोई सपना था
मन कहे,रख भरोसा खुद पर
मत सुन अनचाही दस्तक
मत देख मुड़ पीछे
तू आगे बढ़ता चल
पाल सुनहरी सपनों के रंग
सुंदर चित्र बनाता चल
बन न जाएं दाग कहीं रंग
कर अनसुनी दस्तक की
अपना कर्म करता चल
तू आगे बढ़ता चल
तू आगे बढ़ता चल
मौलिक रचना
उदय वीर भारद्वाज
भारद्वाज भवन
मंदिर मार्ग कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश 176001 मोबाइल 94181 ८७७२६
Reyaan
17-Jan-2024 11:44 PM
V nice
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Gunjan Kamal
08-Jan-2024 08:20 PM
👏👌
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Milind salve
08-Jan-2024 07:19 AM
Nice one
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