अंधा
[ अंधा ]
मुझे देखकर तो हट जाता है
हर कोई
जाने कितने रिश्ते तोड़ जाता है
हर कोई ,
काश में देख सकता
है मेरा भी अपना कोई ।
दिन तो मेरी दुनिया में है ही नही
मैं हमेशा रहा हूं अंधियारे में ,
एक मां-बाप ही है बस मेरा सहारा
बाकी दूर हट जाता है हर कोई ।
मेरी दुनिया मेरी कल्पना है
इन कल्पनाओं की दुनिया में
नही मेरा अपना कोई ,
एक तरफ कर देते है मुझे
राह चलते चलते ,
ठोकर लग जाए तो कहते है
पागल है कोई ।
न मेरी कोई माशुका
न कोई मेरी प्रेम कहानी ,
कब बीता मेरा बचपन
कब चली गई मेरी जवानी ,
दिखता मुझे कुछ है नही
घर के कोने कोने में बुन रही
मुझ अंधे की कहानी ।
किस रिश्ते से किसे क्या पुकारू
ओझल तो यहां है हर कोई ,
कभी भी किसी से भी टकरा जाता हूं मैं
गिरते ही " अंधा है " कहते है,
समझ जाता है हर कोई ।
- गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी
- दिनांक : १२/०१/२०२४
HARSHADA GOSAVI
18-Jan-2024 09:11 AM
👌👍
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Sushi saxena
16-Jan-2024 08:20 PM
Nice
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Gunjan Kamal
13-Jan-2024 03:43 PM
👏👌
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