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मधुरालय

मधुरालय
               1  *सुरभित आसव मधुरालय का*
ढुरे पवन हो मस्त फागुनी,
ऋतु ने ली अँगड़ाई है।
एक घूँट बस दे दे साक़ी-
आसव की सुधि आई है।।
           भरा हृदय है कड़ुवापन से,
            नहीं रीति अच्छी लगती ।
            सोच-कर्म में अंतर लगता-
            उभय बीच अब खाई है।।
अमृत सम मधुरालय-आसव,
जिसको चख जग जीता  है।
व्यथित-विकल तन-मन की हरता-
आसव द्रव अकुलाई  है ।।
            मधुरालय को तन यदि मानो,
             साक़ी प्राण-वायु  इसकी।
             बिना प्राण के तन है मरु-थल-
             साक़ी,पर,भरपाई  है ।।
सागर-साक़ी का है रिश्ता,
प्रेमी-प्रेयसि के  जैसा ।
दोनों मिल बहलाते मन को-
जब-जब रहे जुदाई  है।।
            मधुरालय मन-शुद्धि-केंद्र है,
            साक़ी बना पुरोहित है।
            धुले हृदय की कालिख़ सारी-
             हाला सद्य  नहाई  है ।।
मानो इसको शुद्ध मंत्र सम,
इससे सुख का द्वार खुले।
अब विलम्ब मत करना भाई-
सुर-शुचिता यह  पाई  है।।
           © डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372

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5 Comments

Rupesh Kumar

21-Jan-2024 05:41 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

18-Jan-2024 03:08 PM

👏👌

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Alka jain

17-Jan-2024 09:12 AM

V nice

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