Neeraj Agarwal

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लेखनी कहानी -16-Jan-2024

                सच तो हम सभी जानते हैं मानव या दानव?? बस मन भावनाओं से हां जीवन खुला हुआ है। परन्तु जिंदगी में मानव ही दानव का रूप ले ले इसका अभी कोई उदाहरण हम सच के साथ दे सकते या नहीं हैं। सच के साथ तो बहुत सी घटनाएं हम सभी जानते हैं। 
           मानव या दानव?? में हम मानव शामिल ही तो हैं। एक ही सिक्के के दो पहलु हैं । अगर हम इतिहास या आज के समाज का आईना देखें तो  अब एक मछली पूरा तालाब गंदा करतीं हैं ऐसा आज के आधुनिक परिवेश में सच नहीं होगा। ऐसा इसलिए कहा कि आधुनिक परिवेश में हमारी सोच और व्यवहार का भी आकलन होना चाहिए। न कि लिंग भेदभाव की सोच रखनी चाहिए।
                   आज हम सभी अगर जीवन और जिंदगी के रंगमंच पर मानव या दानव का देखना शुरू करें तब हम शायद जीवन के साथ अन्याय भी कर सकते हैं। क्योंकि जीवन के अध्याय में हम सभी एक समाज एक परिवार और हम संग साथ रहते है भला ही  हम किसी भी समुदाय किसी भी गली किसी भी मोहल्ले में रहते हो परंतु हम मानव समाज के विभिन्न अंग है जिससे हम सभी एक दूसरे की सहयोग भी करते हैं। एक सोच हम सभी को मानव‌ या दानव?
              नज़रिया एहसास और एतबार के फरेब या छल के साथ साथ हमें धोखा मिल जाए और  एक चेहरे के साथ झूठ का चेहरा सामने आ जाता है तब हमारे मनों भाव की आवाज मानव या दानव ?  की अनुभूति होती हैं।
          जीवन में मानव या दानव हम सभी के अंतर्मन के साथ जुड़ा होता है क्योंकि आजकल आधुनिक युग में हम सच या कल्पना के साथ तो नहीं कह सकते परंतु मानव तो मानवता के साथ है और इस मानव के अंदर दुर्व्याचार गिरना ईर्ष्या यह सब दानव के समान है तब हम कह सकते हैं मानव या दानव क्योंकि आपने बहुत से समाचार पत्रों में और बहुत से किताबों में कहानी पड़ी होगी जिसमें बहुत से मानव को आपके मुंह से सहसा निकल पड़ता है भगवान यह मानव है या दानव बस यही कहानी का शीर्षक है आज सच तो बहुत हैं परंतु हम सब इस पर विचार कर सकते हैं मानव या दानव इस पर एक सच के साथ तो पूरी किताब लिखी जा सकती है परंतु हम सब मानव और दानव के लेख या कहानी के रूप में पढ़कर अपने विचार अपने अंदर के मानव को जागृत करें और अपने व्यवहार और अपने मन की अंतर्मन की आवाज के साथ सही और ग़लत का स्वंय मुल्ययांकन करें।
        मानव या दानव हम कह सकते हैं की मानव की मानवता के साथ हम जीवन में स्वयं अपने विचार अपने व्यवहार को तुलनात्मक दृष्टिकोण से देख सकते हैं क्योंकि हम सभी मानवता को पहचानते हैं और साथ ही साथ हम दानव के व्यवहार को भी पहचानते हैं। मानव या दानव के साथ अगर हम सच कह तो हम मानवता भी जानते हैं और अपने व्यवहार के साथ दानव भी हम बन जाते हैं। आओ जीवन में हम अपने जीवन में विचार करें कि हम स्वयं मानव हैं या दानव बस यही हमारे जीवन की एक समीकरण है कि हम स्वयं ही मानव या दानव का निर्णय ले सकते हैं।
          पातकोसी आप सभी पाठकों से मेरी कहानी को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया की सहयोग और विचार की जरूरत है अगर मेरी कहानी मानव या दानव कहीं भी आपके विचारों से यंत्र मन में सच या कल्पना के साथ शब्दों की गरिमा लगती है तब आप अपने जीवन में जरूर जागृति और बदलाव लाएं अगर ऐसा उचित है तब मानव या दानव को समझें।

नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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10 Comments

Rupesh Kumar

21-Jan-2024 04:58 PM

Nice one

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Madhumita

21-Jan-2024 04:42 PM

Nice

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Khushbu

18-Jan-2024 07:54 PM

Very nice

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