लेखनी कहानी -18-Jan-2024
शीर्षक - बर्दाश्त करना ही जिंदगी हैं
सच तो जीवन में हम सब जानते हैं रिश्ते और नाते सब केवल बर्दाश्त करने के साथ है या यूं कहिए बर्दाश्त करना ही जिंदगी है क्योंकि आज के आधुनिक समाज में एक सबसे बड़ी मानसिकता है वह है धन दौलत रुपया पैसा हम सब इसी के साथ बर्दाश्त करना ही जिंदगी समझते हैं सच तो यही है और सोच और समझ सबकी अपनी-अपनी है जैसे दुनिया गोल है वैसे ही धन की आकृति भी गोल है क्योंकि धन भी एक मेटल है और मेटल सोना चांदी तांबा पीतल लोहा इत्यादि की तरह ही होती है बर्दाश्त करना ही जिंदगी होती है क्योंकि सभी वस्तुओं को जब तक तपाया या हथौड़े की चोट न की जाए। तब तक उसकी बनावट या चमक में चमक नहीं आती है। ऐसे ही जिंदगी की भी एक कहानी है बर्दाश्त करना ही जिंदगी है ऐसा हम सभी मानवता के साथ एक दूसरे के मुंह से सुनते हैं पर ऐसा क्यों होता है कभी हमने जाना या नहीं जाना आज हम इस कहानी के पढ़ने के साथ-साथ जानकारी भी लेते हैं जिंदगी बर्दाश्त करने का नाम है या दूसरे शब्दों में कहिए बर्दाश्त करना ही जिंदगी है सच तो यही है कि जीवन में बर्दाश्त भी वही करता है जो समझदार का लीजिए या किसी मतलब के लिए मानसिक और शारीरिक दबाव सहन करता है बस बर्दाश्त करना ही जिंदगी है सुनीता हां सुनीता एक बहुत अच्छे परिवार की लड़की है पढ़ी-लिखी समझदार और वह एक कॉलेज में टीचर है। अब जब हम आधुनिक युग में हैं तब जीवन में मानवता के साथ मन भाव विचार और दिल की चंचलता भी उम्र के साथ-साथ बढ़ती है घटती है और उसके साथ शादी हमारी बर्दाश्त करने की आदत या तो बढ़ती है यह नहीं होती है ऐसे ही सुनीता के साथ था सुनीता एक होनहार टीचर या अध्यापक थी और उसका विषय था हिंदी वह भी मातृभाषा के साथ सम्मान करती थी। और सुनीता अपनी कॉलेज गणित के टीचर नमन से मन ही मन इश्क मोहब्बत प्यार करती थी। परंतु नमन को इस बात का पता भी नहीं था कि सुनीता उन्हें पसंद करती है हां यह बात जरूर थी कि दोनों कॉलेज के हाफ टाइम में कैंटीन में काफी या कोल्ड ड्रिंक शेयर करते थे कभी-कभी खाना भी साथ-साथ खाते थे नमन को भी सुनीता पसंद तो थी परंतु उसे अपने करियर की और अपने चरित्र की बहुत परवाह थी। नमन एक अनाथ परिवार से थे और भाई जीवन को एक सच और समझदारी के साथ जीते थे उनके अंदर अपने जीवन को लेकर संकुचन था क्योंकि उन्हें रिश्ते नाते शायद पहचान या जान पहचान नहीं थी क्योंकि एक अनाथ आदमी जीवन में रिश्ते नाते कहां बना पाता है बस उसके जीवन में एक स्वार्थ या दूसरों के प्रति ना प्यार ना नफरत एक समानता सी रहती है क्योंकि होने के साथ-साथ किसी को प्यार मिलता है या नहीं मिलता है यह उसके जीवन के साथ-साथ निर्भर करता है। हां यह सच है जिंदगी बर्दाश्त करने का ही नाम है या बर्दाश्त करना ही जिंदगी है नमन के साथ कुछ ऐसा ही था वह जिंदगी में बहुत कुछ बर्दाश्त करता था एक दिन सुनीता नमन के साथ कॉफी पी रही थी और कॉफी पीते पीते सुनीता ने नमन के हाथ पकड़ कर नमन से अपने मन की चाहत का इजहार कर दिया नमन सुनीता के अचानक इस व्यवहार से कुछ समझ नहीं पाए और वह उठकर अपने क्लास रूम में चले गए और सुनीता भी इस व्यवहार से नमन को समझ नहीं पाई और अगले दिन से नमन सुनीता से कटे कटे रहने लगे कुछ दिन बाद सुनीता ने एक अवसर पाकर नमन को अकेले में कक्षा में बैठे पाया तब वह उनके पास जाती है और कहती नमन बर्दाश्त करना ही जिंदगी है यह तो मैं समझता हूं परंतु जीवन जीना भी तो एक जिंदगी है तुम कब तक अपने आप में अकेले ऐसे ही जिंदगी जीते रहोगे तब नमन आंखों में आंसू भरकर कहता है सुनीता मेरे पास जीवन में तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है केवल अध्यापक टीचर के पास उसके वेतन के सिवा कुछ नहीं हो सकता हैं तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं शायद इतना बर्दाश्त या इतनी खुशी इतना प्यार बर्दाश्त नहीं कर पाया जिसका जवाब मेरे पास होता मैं वहां से तुम्हें बिना कुछ कहे उठ कर चला आया बस इतनी सी बात कोई बात नहीं हम दोनों मिलकर जीवन जिएंगे और समाज के लोगों की तनी या कटाक्ष हम बर्दाश्त कर लेंगे पर अपने जीवन में हम खुशियां लेंगे क्योंकि बर्दाश्त करना ही जिंदगी है ऐसा सुनकर नमन सुनीता को गले लगा लेता है और दोनों साथ-साथ कॉफी पीने के लिए कैंटीन की ओर चल पड़ते है शायद सुनीता और नमन में बर्दाश्त करना ही जिंदगी की सोच बना ली थी और वह अपनी दुनिया बसाने के लिए खुशी-खुशी एक दूसरे का सहयोग करते हैं और कैंटीन में हंसते हुए दोनों एक कॉफी के साथ दोनों पीते हैं क्योंकि नमन आप समझ चुका था बर्दाश्त करना ही जिंदगी है।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र
Shnaya
22-Jan-2024 12:18 AM
Very nice
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नंदिता राय
22-Jan-2024 12:13 AM
Nice
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Sushi saxena
21-Jan-2024 10:59 PM
Nice
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