Add To collaction

मधुरालय

*मधुरालय*
                   *सुरभित आसव मधुरालय का*6
तन का थका व मन का विचलित,
जब चखता है  आसव  को।
परमानंद-सिंधु तर  जाता-
बिना चुका उतराई  है।।
       हरित मना, उत्साहित होकर,
       पुनि लग जाता  कर्मों  में।
       प्रभु-प्रसाद निज कर्म समझता-
        देता  उन्हें  बधाई  है।।
नाथ-कृपा,हरिनाथ-कृपा को,
पाकर होता हर्षित वह।
कुल-समाज-परिजन की सेवा-
करता शुचि सेवकाई  है।।
       मिले जो अवसर अहो भाग्य!
         जन-समाज  की  सेवा  का।
        हो जाती है सफल जिंदगी-
          होती  नेह  लगाई  है।।
साक़ी भी करता है सेवा,
निशि-वासर व शामों-सहर।
करे आत्मा तृप्त  सभी की-
रखता  भाव  हिताई  है।।
      मधुरालय का प्याला छलके,
      भरा हुआ मृदु हाला  से।
      मणि-मुक्ता सम कंठ सुशोभित-
      छटा मनोहर छाई  है।।
हर प्यासा मन चुम्बन चाहे,
ऐसी सुंदर बाला  का।
छू कर अधरों से वह प्यासा-
करता परम ढिठाई  है।।
     जब करता अठखेली प्यासा,
     प्याले की उस हाला  से।
     सकुचि-सकुचि उसकी चुस्की में-
      हाला बहु  शरमाई  है।।
नाजुक हाला,प्यासा निर्मम,
दोनों का क्या  मेल  बना!
क़ुदरत का बस यही करिश्मा-
यही  जगत-भरमाई  है।।
     निशा-दिवस का मेल यही है,
     तम के संग उजाले  का।
     प्राणों के सँग जीवन जोड़ा-
     करती मौत  जुदाई  है।।
पुनि,वियोग  संयोग है बनता,
जीव जन्म जग  लेता  है।
यह सिलसिला बना है रहता-
पुनि-पुनि आ  जग  जाई है।।
      प्रकृति-पुरुष मिल जगत सँवारें,
      पंच तत्व दें  आलंबन।
      क्षिति-जल-पवन-गगन-अगन से-
       रुचिकर  सृष्टि  रचाई  है।।
प्राणों को तो पवन सजाए,
रचा ताप रवि-किरणों ने।
गगन-अगन-जल करें सुरक्षा-
पृथ्वी अन्न  उगाई  है।।
     अन्न-फूल-फल पाकर दुनिया,
     करती जीवन-यापन  है।
     बिना दिए कुछ ध्यान तथ्य पर-
     मृत्यु मात्र सच्चाई  है।।
                   © डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

   16
5 Comments

Shnaya

23-Jan-2024 10:15 PM

Very nice

Reply

Varsha_Upadhyay

23-Jan-2024 05:04 PM

बहुत खूब

Reply

Gunjan Kamal

23-Jan-2024 02:52 PM

👏👌

Reply