GUDDU MUNERI

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खाली दिमाग शैतान का घर


[ खाली दिमाग शैतान का घर  ] 


जमाल साहब का एक ही तो लड़का था " अहमद रजा " 

यही कोई 14-15 वर्ष का होगा । बहुत शैतानियां करता फिरता था फिर चाहे कोई हंसे या दो थप्पड़ कान के नीचे दे दे, काम धाम उसने कुछ सीखा नही , आठवी के बाद स्कूल छोड़ कर घर बैठ गया । सप्ताह में दो दिन अब्बू के साथ काम पर जाता बाकी दिन यार-दोस्तो के साथ गुजारता या फिर घर में ।

कुछ दिनों पहले उसी अहमद रजा का जिक्र चल रहा था ।


जमाल साहब से रफीक साहब किसी लड़के की तलाश में मिलने आए जो दुकान के काम में हाथ बंटा सके और वह उसे अच्छी खांसी तनखाह भी देने को तैयार थे ।


" अस्सलामुआलेकम  जनाब " 

" जमाल साहब " 

" क्या हो रहा है " 

" और कैसे है "  

रफीक साहब ने करीब आकर जमाल साहब से कहा ।


जमाल साहब की साइकिल ठीक करने की दुकान थी रफीक साहब को आया देखकर साइकिल ठीक करना छोड़ हाथ साफ करके आते हुए बोले -

" वालेकुम अस्सलाम " 

" अल्हमदुलिल्ला " 

" सब ठीक है ", " आओ बैठो", "कैसे आना हुआ ?" 

" सब खैरियत तो है " 


जमाल साहब स्टूल देते हुए फिर बोले -

" ये लो बैठो " 


" जी सब खैरियत से "  स्टूल पर बैठते हुए रफीक साहब ने कहा ।


और फिर जमाल साहब ने भी पास में रखा एक और स्टूल उठाया और रफीक साहब के पास बैठ गए 


" गोलू ! ये पहिया ये गोपी लगा देगा " 

" रफीक साहब को पानी पिलाओ " खादिम गोलू की और देखकर बोले ,

" और फिर जाओ राजू से दो चाय लें आना  " 


गोलू पानी लेने चला जाता है और गोपी जो पास ही खड़ा था वह अपने काम में (पहिया लगाने) लग जाता है और रफीक साहब और जमाल साहब आपस में बातचीत कर रहे है 


रफीक साहब : भाई साहब एक लड़का चाहिए 

                   जो दुकान का काम संभाल सके, कोई हो तो 

                   बताओ या फिर एक काम करो,  अपने

                   लड़के को लगा दो , काम का बहुत आगे पीछे

                   हो रहा है वरना मैं कोई और देख लेता और वैसे भीं वह घूमता फिरता रहता है सप्ताह में दो दिन ही आता है तेरे पास दुकान पर देख ले अगर मान जाए तो ।


जमाल साहब : चल ठीक है मैं " अहमद रजा" को बुलवाता हूं 

                    "  ये लो पानी पियो " ( गोलू पानी ले आया ) 

रफीक साहब ने पानी पिया और फिर जमाल साहब ने भी पानी पिया ।


" एक काम कर गोलू ! राजू को चाय की बोल कर सीधा घर जा और "अहमद रजा" को बुलाकर ला और फिर लौटते हुए चाय लेते आना "  जमाल साहब बोले ।


" ठीक है साहब " गोलू ने जवाब दिया । 

गोलू पहले सीधा राजू चाय वाले के पास गया 

" राजू भाई दो चाय बनाकर रखो " 

" मैं अभी आया " 

कहते हुए आगे सीधा मालिक के घर पहुंचा और अहमद रजा को आवाज लगाई ।

दरवाजा खुला और अहमद की अम्मी जान बाहर आई और बोली -

" हा गोलू बोल " 


गोलू ने जवाब दिया 

" अहमद को भेज दो " साहब दुकान पर बुला रहे है अभी की अभी " 

अहमद की अम्मी जान ने बताया कि " वह यहां पिछले तीन घंटों से नही है, पीछे उस गली में देख वहां कंचे खेल रहा होगा " 


गोलू भागा भागा गया गली मैं मुड़कर जैसे ही देखा 

अहमद दो चार लड़कों के साथ कंचे खेलता हुआ दिखाई दिया 


गोलू ने अहमद से कहा - " साहब जी बुला रहे है दुकान पर आ एक जरूरी काम है " 


" तुम चलो मैं आता हूं " अहमद ने कहा ।


गोलू वहां से वापस हो लिया और रास्ते में अहमद की अम्मी से बोलता हुआ निकला कि " जी अहमद कंचे ही खेल रहा था " 

"  वहां मैने उसको बोल दिया है " 

" आ जायेगा दुकान पर " 

" मैं जा रहा हु चाय लेने वो कबाड़े की दुकान वाले रफीक साहब आए हुए है " 


गोलू भागता हुआ सीधा राजू की दुकान पर गया और चाय ली, चाय लेकर सीधा उधर ही अपनी दुकान पर चाय लेकर पहुंचा ।


" लो साहब " रफीक साहब को चाय पकड़ाते हुए गोलू

" लो साहब आप भी " जमाल साहब को चाय पकड़ाते हुए गोलू बोला ।


रफीक साहब ने एक घूंट ही लगाया था कि अहमद रजा भी आ गया 


" हा अब्बू जी बोलो क्या काम था " अहमद ने पूछा ।

रफीक साहब को देखकर अहमद ने सलाम किया 

" अस्सलामुआलेकम " 


" वालेकुम अस्सलाम " रफीक साहब ने जवाब दिया 


जमाल साहब अहमद से बोले -  " इधर आओ " 

अहमद आया और  पास आकर खड़ा हो गया 


जमाल साहब अपने बेटे अहमद को समझते हुए बोले -


" देखो ये है रफीक साहब,

"  इनको तुमने देखा भी होगा, 

" चार गलियां छोड़कर इनकी कबाड़े की दुकान है ,

" इनके यहां काम करोगे ? 

" बेटे पैसे भी मिलेंगे आपको खर्च के लिए " 

" मैने बात कर ली है " 

" तुम्हारी हा या ना पूछनी थी " ,

"  बताओ " 

" कैसा रहेगा सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक " 


इतना कहने के बाद रफीक साहब बोले - 

" बेटा तेरे फायदे की कह रहे है ,

" तुम दिनभर यहां वहां घूमना फिरना कब तक करोगे ,

" अब तो तुम 15 साल के हो चले हो ,

" पढ़ाई तुमने छोड़ दी ,

" कोई जोर जबरदस्ती नहीं है तुम पर " 


अहमद कुछ सोच में पड़ गया आखिर क्या करू 

अगर मैं काम पर चला गया मुझे खेलने को नही मिलेगा 

यार दोस्त सब छूट जायेंगे सारे। मजे के दिन चलें जायेंगे 

अहमद यह सब सोचने में लग गया ।


" नही अब्बू मैं नही जाऊंगा " 

" अभी तो मुझे खेल कूद लेने दो " 

" जब मैं 18 वर्ष का हो जाऊंगा इंशा अल्लाह जरूर काम पर जाऊंगा जो काम बताओगे मैं करने चला जाऊंगा " 

अहमद ने लाचारी जैसे मूड में कहा ।


जमाल साहब बोले - देखो बेटा !  

" एक बार और सोच लो ,

रफीक साहब आपको दुकान पर बैठने के 8 हजार रुपए महीना देंगे कोई दुकानदार नही देगा यहां काम पर आपको रखने के देख ले ऐसे। मौके फिर नही मिलते " 


अहमद है कि फिर से सोच विचार में लग गया जैसे जोर जबदस्ती उसे अब हा कर देनी चाहिए 


" रफीक साहब एडवांस भी देने को तैयार है " 

" और फिर तुम अपने खर्च खुद करना सीख सकोगे " 

" अपने लिए नए जूते नए कपड़े ला सकोगे " 

" क्या हमेशा अपनी अम्मी के पल्लू से बंधे रहोगे " 

" एक बात और अहम बात बेटे ! 

" खाली दिमाग शैतान का घर होता है "

अगर तुम बेटे अपने आप को काम में व्यस्त रखोगे तो कभी भी आप बुरे कामों की ओर जाने का मौका नहीं मिलेगा और आप हमेशा नेक काम की तरफ रहोगे " 

जमाल साहब ने बेटे को समझाते हुए कहा ।


अब शायद बेटे अहमद की समझ में कुछ आया और इतने फायदे सुने तो उसने हां कर दी ।


" ठीक है अब्बू " 


" चलो जी रफीक साहब आपका काम तो हों लिया 

बेटा अहमद कल आ जायेगा सुबह " जमाल साहब ने कहा रफीक साहब से


" ठीक है मैं चलता हूं बेटे सुबह आ जाना 8 बजे दुकान खुलेगी " ठीक है "  रफीक साहब अहमद और जमाल साहब की ओर देखकर कहते हुए वापस घर को चल दिए 



कुछ घंटे काम करने के बाद शाम को दुकान (बंद) बड़ा कर 

घर पहुंचे तो अहमद की अम्मी ने अहमद के अब्बू से पूछा- 

"दोपहर में रफीक साहब आए थे क्या हुआ " 


" दुकान पर लड़का चाहिए था रखने के लिए " 

" अहमद की बात कर दी पक्की " 


" चलो ठीक हैं यहां खाली पड़े से तो बेहतर है कुछ काम कर ले " अहमद की अम्मी बोली


" अच्छा इसका खाली दिमाग शैतान का दिमाग हो रहा था अब कम से कम कुछ काम धंधा करना सीख जायेगा बेहतर रहेगा " अम्मी फिर कहने लगीं।


" यहां  तो बस इससे कंचे खिलवा लो " 

" गिल्ली डंडा खिलवा लो " 

" ताश के पत्ते भी खेलने की सुनी है " 

रसोई की ओर से आती हुई अहमद की अम्मी फिर से कहती हुई 


" चलो आओ सब खाना खाओ खाना लगा दिया " 

खाने की डिश टेबल पर रखती हुई अहमद की अम्मी

वापस रसोई में चली गई 


Note : यदि हम अपने आप को ज्यादा से ज्यादा अच्छे कार्य में व्यस्त रखेंगे तो हमे बुरे कार्यों को करने का समय ही नहीं मिलेगा  यही एक सत्य है जीवन को बनाए रखने का ।

   

        - गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी 

दिनांक : २३/०१/२०२४

आज की प्रतियोगिता









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10 Comments

Naazmeen khan

24-Jan-2024 09:23 PM

Nice

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नंदिता राय

24-Jan-2024 05:50 PM

Nice one

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Mohammed urooj khan

24-Jan-2024 02:19 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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