Add To collaction

वक्त

कौन चल सका वक्त के साथ,

ये वक्त आजमाता बहुत है।
चार कदम महकाती कलियाँ,
काँटे फिर चुभाता बहुत है।

कदम ताल मिले नहीं इसकी,
सरपट दौड़ लगाता जाए।
ज़रा चूक हुई क्या हमसे,
पीछे छोड़ भगाता बहुत है।

कितना कोई दौड़ लगाए,
वक्त के साथ कब चल पाए।
कभी छांव कभी धूप वक्त की,
लेकिन ये झुलसाता बहुत है।

मंजिल अपने सम्मुख होती,
बस इक कदम बढ़ाकर छूना।
बदली दिशा वक्त ने जब भी,
ठोकर दे गिराता बहुत है।

भ्रम होता वक्त हम राही।
मुड़ कर देखा साया न संग।
वक्त का चक्र चले निरंतर,
वक्त हाथ छुड़ाता बहुत है।

पूछा जब भगाते क्यों हो,
स्मित नहीं रुलाते क्यों हो।
बोला मित्र संघर्ष है मेरा,
मुझे संघर्ष भाता बहुत है।

वक्त रुलाए वक्त हँसाए,
ज़ख्म पर मरहम भी लगाए।
वक़्त किसी का सगा नहीं है,
वक़्त मार खिलाता बहुत है।

बड़ा वक्त से मीत न कोई,
वक्त सुनहरी डगर दिखाए।
वक्त की कद्र करने वाले,
वक्त साथ निभाता बहुत है।

वक्त भला "श्री" वक्त बुरा है,
अपने अपने अफसाने हैं।
दस्तक वक्त की पट न खोले,
गया वक्त पछतावा बहुत हैं।

स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


   20
12 Comments

Mohammed urooj khan

27-Jan-2024 11:29 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

बहुत ही सुंदर और यथार्थ

Reply

Shnaya

24-Jan-2024 08:13 PM

Nice

Reply