लेखनी प्रतियोगिता -29-Jan-2024 वक़्त एक सा नही रहता है
शीर्षक = वक़्त एक सा नही रहता
"क्या बात है, बड़ी देर से देख रही हूँ आप खोये खोये नजर आ रहे है सब ठीक तो है ज़ब से बाहर से आये है, किसी से कुछ कही सुनी हुयी क्या? " साधना जी ने पास बैठे अपने पति से कहा
"नही बस यूं ही " साधना जी के पति आलोक जी ने कहा
"कुछ तो हुआ होगा? "साधना जी ने दोबारा कहा
"वो घर याद है आपको जो पिछली वाली गली में बना हुआ था " आलोक जी ने कहा
"पिछली वाली गली में तो बहुत सारे घर बने हुए है आप कौन से वाले की बात कर रहे है, थोड़ा खुल कर बताइये " साधना जी ने कहा उनकी तरफ देखते हुए
"अरे वो वाला घर जिसमे बड़ा सा दरवाज़ा भी लगा हुआ है और मैंने तुम्हे बताया था कि ये वाला घर मेरे सामने बना है हमारी गली का सबसे पुराना और खूबसूरत घर जो है " आलोक जी कुछ और कहते तब ही साधना जी बोल पड़ी
"अच्छा वो जिसमे सलीम मास्टर साहब का परिवार रहता है "
"रहता है नही रहता था " आलोक जी बोल पड़े
"क्या मतलब आपका अभी कुछ दिन पहले ही तो मैं बाजार जा रही थी तो मुझे उस घर में कुछ लोग दिखाई दिए थे कहा चले गए " साधना जी ने कहा
"लेकिन अब वो लोग चले गए उन्होंने वो घर बेच दिया " आलोक जी ने कहा
"हाय राम, लेकिन क्यू? उनका तो भरा पूरा परिवार था तीन बेटे थे दो बेटियां भी थी और अभी तो वो खुद भी सही सलामत थे हाँ उनकी पत्नि का स्वर्गवास कुछ साल पहले हो गया था मैं गयी थी उनके घर उनका तो घर भी कितना प्यारा था आखिर क्यू बेच दिया "साधना जी ने हेरत से पूछा
"बस वक़्त के आगे कहा किसी की चलती है, वक़्त कब एक सा रहा है मुझे मिले थे अपने बनवारी की दुकान पर कुछ समान खरीद रहे थे मैंने हाल चाल पूछा तो खामोश हो गए
मैंने दोबारा पूछा तो बोल पड़े बस ठीक ही है, जिंदगी के दिन काट रहे है कब बुलावा आ जाये पता नही
उन्हें इस तरह कहते देख समझ गया था कि कुछ हुआ है फिर उन्होंने खुद ही बता दिया कि उन्होंने वो घर बेच दिया है, जिस मकसद के चलते वो घर उन्होंने बनाया था अब वो पूरा होता नजर नही आ रहा था उनका अरमान था कि उनके बच्चे प्यार से उस घर में रहे लेकिन ऐसा हो नही पाया आये दिन की लड़ाई लगी रहती थी भाई, भाई के खून का प्यासा न बन जाये इन्ही सब के चलते उन्होंने उसे बेच कर सबको उनके हिस्से का पैसा दे दिया उनके पास तो वही एक संपत्ति थी जो उन्होंने जीवन में कमाई थी बाकि उनकी पैंशन है जो हर महीने आ जाती है पेंशन की वजह से बेटे बहू उन्हें अपने साथ रखने को तैयार भी हो गए थे लेकिन फिर उनकी पैंशन पर भी उनके बच्चों की नजर गड़ने लगी थी जिसके पास भी वो रहते बाकियो को लगता की पापा अपनी पैंशन उसे दे रहे है या फिर वो पैसे ले रहा है इन्ही सब के चलते उन्होंने तीनों में से एक के पास भी रहना सही नही समझा और अब किराये के मकान पर रह रहे है ज़ब तक की भी जिंदगी लिखी हुयी है उनकी" आलोक जी ने कहा दुखी मन से
"ओह बुरा लगा सुन कर " साधना जी ने कहा
"कर भी क्या सकते है, सिवाय अफ़सोस के " आलोक जी ने कहा
वैसे एक बात कहू, आपने जो फैसला लिया था वो उस समय तो मुझे बहुत बुरा लगा था इस तरह अपने बच्चों को उनका हिस्सा देकर जबकी वो अभी हमारे साथ ही रहते है लेकिन अब लगता है आपने सही ही किया वक़्त का क्या भरोसा कब बदल जाये अभी साथ है कल को सब अलग अलग हो जाये और फिर हम लोग भी नही हो तो बेवजह एक दूजे की जान के दुश्मन बन जाते अब हमारे पास ये छोटा सा घर है जो ज़ब तक हमारा है ज़ब तक हम दोनों साथ है उसके बाद आपकी वासियत के अनुसार दान में चला जाएगा न कोई लड़ाई न कोई बटवारा साधना जी ने कहा
"ओह तुम्हे समझ तो आ गया देर से ही सही कि मैंने ऐसा क्यू किया था क्यूंकि वक्त कहा किसी का एक सा रहा है कब क्या हो जाये कौन जानता है आज जो बहन भाई एक दुसरे से खून के रिश्ते से बंधे है कब इन रिश्तों का खून करने पर अमादा हो जाये कोई नही कह सकता ये माया चीज ही ऐसी है हमारे पास जो कुछ भी था उसे मैंने जीते जी ही जिसे जितना देना था दे दिया ताकि बाद को कोई लड़ाई झगड़ा न हो " आलोक जी ने कहा
"नही मालूम की आपने ठीक किया या नही लेकिन जो किया सही ही किया होगा इतना मुझे यकीन है चलिए अब अपना मूड ठीक कर लीजिये किसी ने देखा तो सवाल पूछने लगेगा" साधना जी ने कहा और वहा से चली गयी
समाप्त....
प्रतियोगिता हेतु....
Gunjan Kamal
30-Jan-2024 04:31 PM
बहुत खूब
Reply
Varsha_Upadhyay
30-Jan-2024 09:52 AM
बहुत खूब
Reply
Milind salve
29-Jan-2024 09:12 PM
Very nice
Reply