वक्त एक सा नही रहता
[ वक्त एक सा नही रहता ]
" क्या बताऊं दोस्त "
" कंप्यूटर में वायरस आ जायेगा तुम अब मत चलाओ "
रवि ने मनोज से यही कहते हुए कंप्यूटर का स्विच बंद का दिया ।
रवि ने बाहर की ओर इशारा किया
" आ बाहर चलते है "
और चलते चलते कहने लगा -
" तुम जब भी आते हो "
" कंप्यूटर में घुस जाते हो "
" कभी एम. एस. वर्ड "
" कभी एक्सेल, कभी डीटीपी "
मनोज भी खड़ा होकर साथ में चल दिया मनोज को मन खट्टा हो गया वह मन ही मन सोचने लगा कि दी तीन दिन से वह मुझे अब कंप्यूटर पर बैठने नही दे रहा, बहुत इतराने लगा है ।
कुछ देर में सीढ़ियों से उतरते ही गली में चलते चलते वह एक पार्क में पहुंचे और वहां लगी बैंच पर बैठकर बातें शुरू की
रवि का हाथ मनोज मनोज अपने कंधे पर से हटाते हुए बोला-
" एक बात बता रवि !
" तेरे कंप्यूटर में वायरस कैसे आ सकता तुझे तो
कंप्यूटर चलाना आता है और वायरस आ भीं गया था
तो तुम रिफ्रेश कर लोगे और तुम्हारे तो पापा भी
कंप्यूटर चलाना जानते है कोई दिक्कत आए तो सही
करा लोगे , मैं देख रहा हूं तुम कई दिनों से मुझे
कंप्यूटर चलाने से रोक रहे हो दस दिन की बात और है
पापा मुझे कंप्यूटर दिला देंगे , मेरा भाई ! मेरा दोस्त !
यार ! दस की बात है मना मत करना "
रवि : देख मनोज मेरी मम्मी और मैं तुझ से तंग आ गए है
दस पंद्रह दिन से , तुम यार कंप्यूटर में आकर लग जाते हों तुमने कहा था दस पंद्रह दिन की बात हैं लेकिन आज एक महीना हो गया और दस दिन और बोल रहे हो ।
मनोज : थोड़े दिन की बात है
रवि : नही भाई मम्मी नाराज होती है वह मुझ पर गुस्सा
करेगी , तुम कल से कंप्यूटर नही चलाओगे ।
मनोज ने यह सुनकर कुछ हैरान परेशान सा होकर रवि को देखे जा रहा था और फिर गुस्से जैसे मिजाज में बोला -
" कोई नी मत दिखा "
" आज दोस्ती में दरार आ गई "
" भूल गया जब तू रोज मेहताब के घर जाता था कंप्यूटर सीखने "
" और तुम्हारी मम्मी से छुपकर "
" क्या उसकी मम्मी ने कभी तुझे माना किया "
" आज तू सीख गया तो " " और तेरे पास कंप्यूटर है तो हैसियत दिखा रहा है "
" कोई बात नही "
यही कुछ न कुछ बोलता हुआ मनोज वहां रवि को छोड़कर चला गया और सीधा अपने घर गया ।
खाना वगैरा खाकर घर में मोबाइल में व्यस्त मनोज अपने पापा का आने का इंतजार कर रहा था आखिर कार शाम हुई और उसके पापा ड्यूटी से लौट आए ।
बस पापा के आने की देर नही हुई कि मनोज पापा के पास गया और
नर्म आवाज के लहजे में बोला -
" पापा रवि ने कंप्यूटर चलाने से मना कर दिया "
" अब मैं कैसे सीखूंगा "
" आपने कहा था दस पंद्रह दिन में दिला दूंगा "
" आज एक महीना हो गया "
" कब दिलाओगे "
पापा : अच्छा , कोई बात नही दो चार दिन रुक जा समझो आ
गया
मनोज : सच में
पापा : हा सच में
मनोज के चेहरे पर अब कुछ मुस्कुराहट सी आई और फिर वह कमरे में चला गया ।
पीछे पीछे पापा भीं कमरे में गए और मनोज से बोलें -
एक काम और करना -
" कल मेहताब के पास चले जाना कंप्यूटर सीखने "
" मैं सुबह जब ड्यूटी से निकलूंगा तब मेहताब को बोल दूंगा "
वो सीखा देगा दो तीन दिन "
" ठीक है पापा " मनोज ने कहा ।
कल फिर सुबह हुई मनोज के पापा मेहताब के पास पहुंचे
खट खट, खट खट, खट खट दरवाजा बजाते हुए बोले -
";मेहताब बेटे "
" बेटे मेहताब "
दरवाजा खुला और सामने मेहताब ही था
" आइए अंकल जी "
" कैसे हों ? कुछ काम था ? मेहताब ने पूछा
मनोज के पापा ने अपनी बात कहते हुए बोले कि
" एक काम था बेटे "
" वो मनोज कंप्यूटर सीख रहा है न "
" दो चार दिन के लिए बैठ कर सीखा दो "
" उसका कंप्यूटर दो चार दिन बाद आ जायेगा "
यह सुनकर मेहताब ने रजामंदी दी कि
" कोई बात नही "
" वैसे भी मैं दिन में बच्चों को ट्यूशन देता हूं "
" कंप्यूटर खाली रहता है "
" आप भेज देना मनोज को दो बजे "
" आ जाएगा "
ठीक है बेटे !
" मनोज दो बजे आ जायेगा "
" मैं चलता हूं ड्यूटी के लिए लेट हो जाऊंगा नही तो "
" ठीक है "
मनोज के पापा दरवाजे पर ही बात करके चल दिए
" ठीक है अंकल " मेहताब ने कहा ।
और मेहताब भी दरवाजा बंद करके घर में वापस चला गया
दो बजे मनोज मेहताब के पास गया पहले तो कुछ देर बातें की और फिर उसने मेहताब को रवि के बारे में बताया कि रवि के पास जाता था उसने मुझे खुद सीखने से मना कर दिया है
रवि का यह बर्ताव सुनकर मेहताब ने मनोज से कहा -
" मनोज तुम यार दिल लगाकर यहां सीखो "
" जो न आए मुझसे पूछ लेना " , "और क्या"
" जितने दिन सीखना चाहो सीखो "
मनोज को यह बात सुनकर बहुत खुशी हुई
मनोज अब हर रोज मेहताब के घर कंप्यूटर सीखने रोज जाता और लगभग चार दिन हो भी चुके थे लेकिन कंप्यूटर नही आया तो मनोज मन ही मन फिर सोचने लगा कहीं अबकी बार मेहताब न मना कर दे ।
और अगर ऐसा हुआ तो मैं कंप्यूटर चलाना सीखना ही छोड़ दूंगा कभी किसी के कभी के जाने से अच्छा है छोड़ हीं दिया जाए ।
इन सब बातो को सोचते सोचते वह उठ कर घर जाने ही वाला था कि मेहताब आ गया
" क्या हुआ कहां जा रहा है मनोज ? "
" बैठ "
" आज जल्दी जा रहा हैं एक घंटा पहले ही "
" अब तो पूरे दस दिन हो गए अब तो बहुत कुछ सीख गया होगा "
" हा भाई मेहताब "
"तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद "
" अब घर चलता हूं आज थकान बहुत है "
मनोज ने कहा ।
मनोज दरवाजे की ओर जा ही रहा था कि मेहताब ने बोला -
" घर से मिठाई वगैरा भीं ले आना "
यह सुनते ही तो मनोज रुक गया और मेहताब से पूछा -
" किस खुशी में मिठाई खिलाऊ "
मेहताब ने जवाब दिया -
" अरे बस खिला दियो तेरी मर्जी है "
" जा अब जा आराम "
(शर्म की वजह से खुलकर के नही पाया )
मेहताब अभी बाहर से ही आया था रास्ते में मनोज के पापा दिखाई दिए
मेहताब को देखकर वह रुक गए थे उनके साथ एक रिक्शे वाला भी था जिससे वह कह रहे थे कि -
" वहां उधर जहां एक पेड़ लगा है बस वही रोक लेना "
रिक्शे में एक दो बड़े बड़े से बॉक्स थे जिस पर मॉनिटर की छपी तस्वीर साफ दिखाई दे रहीं थी और दूसरे बॉक्स पर सीपीयू की ।
वह समझ गया था कि आज मनोज के पापा कंप्यूटर ले आए है ।
मेहताब देखते ही मुस्कुराया था फिर बोला
" और अंकल जी "
" आज तो ले आए हो कंप्यूटर "
मनोज के पापा बोले कि
" हा बेटे "
" मनोज के सर है न वो इंग्लिश के टीचर " अब्दुल शफीक "
" उनको साथ ले गया था "
" वह रास्ते में घर के पास ही उतर गए "
" अच्छा मनोज आया है आज "
मेहताब ने जवाब दिया -
"जी आया है "
" ठीक है चलता हूं " और मेहताब ने घर वापस जाते हुए
कहा ।
" ठीक है बेटे " कहकर रिक्शे वाले की ओर देखकर बोले मनोज के पापा ने बोले -
" बस बस वही रुक का पेड़ के पास "
और फिर तेज कदम से रिक्शे वाले के पास अपने घर के करीब चले गए ।
इधर मनोज के घर वापस जाने के बाद मेहताब तीन बजे से बच्चो को ट्यूशन पढ़ाने में लग गया ।
और फिर कुछ मिनटों बाद मनोज भी घर पहुंच गया सुना दिया कि कमरे से कुछ घीसट-पीसट की आवाज आ रही है
वह कमरे में गया देखा तो देखा मनोज के पापा और मम्मी दोनो टेबल को सरका रहे है और वही पास में रखे बैड पर कंप्यूटर रखा हुआ था
देखते ही मनोज समझ गया आज कंप्यूटर घर आ गया है
बस अब खुशी का ठिकाना न था ।
आज शाम को ही इंग्लिश के टीचर अब्दुल शफीक जी को मनोज के पापा ने घर बुला लिया ।
और सॉफ्टवेयर विंडो आदि की जानकारी उन्हे अच्छे से थी इसलिए उन्हें बुलाकर मनोज का कंप्यूटर चालू करा दिया
" ले मनोज तेरा कंप्यूटर चालू हो गया "
और फिर मम्मी द्वारा लाई गई चाय की चुस्कियां लेते हुए
बोले -
" अब कुछ मिठाई विठाई तो खिलवा दे "
मनोज मुस्कुराया और पापा की ओर देखने लगा ।
पापा ने 500 का नॉट मनोज दिया जा एक किलो का मिठाई पैक करवा ला ।
मनोज तभी बोला -
" तभी मेहताब कह रहा था मिठाई बिठाई खिलवा दे "
" पापा तुमने बताया होगा मेहताब को "
" हा जब में ला रहा था तब रास्ते में मेहताब मिला था"
पापा ने बताया ।
" चल अब जा जल्दी मिठाई ले आ सामने वाली दुकान से "
मनोज को मिठाई लेने भेजते हुएं
मनोज मिठाई लेने यू गया और यू थोड़ी देर में आ गया
जल्दी जल्दी से मनोज ने पैकेट खोला ।
मनोज के पापा बोले - " पहले सफीक सर को दो"
मनोज ने ऐसा ही किया और फिर सबने एक एक पीस मिठाई का लिया
कुछ मिठाई " मेहताब " को भीं दे दियो " मनोज "
मनोज की मम्मी ने कहा ।
" अच्छा ठीक है "
" कितना टाइम हुआ है " मनोज बोला
मम्मी बोली - "अभी तो 6: 00 बजे है जा दे आ "
" ठीक है मैं चलता हूं "
" और बेटा मनोज "
" अब मन लगाकर सीखना और तैयारी भी करना जॉब की " " ठीक है "
शफीक सर ने विदाई ली और अपने घर के लिए चले गए
" ठीक है "
" मैं भी जा रहा हूं मेहताब के मिठाई देने "
मनोज मिठाई का डिब्बा पकड़े हुए शफीक सर के पीछे पीछे चल दिया
सीधे मनोज मेहताब के घर गया और देखते ही मेहताब भी खुश हुआ
" देखा मैने क्या कहा था "
" मिठाई तो खिलानी पड़ेगी " मेहताब ने कहा
" मुझे लगा तुम मजाक कर रहे थें" मनोज
ने कहा ।
और अगले दिन से धीरे धीरे मनोज अपने कंप्यूटर पर बैठकर और बेहतर प्रैक्टिस करने लगा जिससे कंप्यूटर पर उसकी स्किल और तेज हो गई साथ ही वह अपनी टाइपिंग स्पीड बढ़ाने में भी कामयाब रहा ।
रवि के पास से प्रेक्टिस छोड़े हुए उसे लगभग आज तीन। महीने हो चुके थे और वह इस काबिल हो गया था कि अब रवि से मदद मांगना तो दूर उसके पास भी नहीं जाता था ।
यूं ही एक दिन मेहताब के पास रवि पहुंचा हाथ में कुछ पेपर्स भी थे जो उसे अपलोड करने बेहद जरूरी थे
लेकिन यह संभव न हों पाया मेहताब के घर की लाइट चली गई और रवि अब सोच में था कि अब किस के पास जाऊं
तो मेहताब ने मनोज के बारे में बताया ।
उसका घर वैसे भी दूसरी साइड है और उधर वाले पोल की लाइट आ रही है ।
" आ मनोज के पास चलते है " मेहताब ने रवि से कहा
लेकिन जीवन की विडंबना देखो कि जैसे ही दोनो घर से बाहर आए उधर से मनोज भी यही आ गया ।
मनोज ने रवि को देख तो लिया लेकिन अनदेखा किया ठीक वैसे ही रवि ने मनोज से आंखें फेर ली और दूसरी ओर साइड में खड़ा हो गया ।
" और मनोज तुम !
" हम तेरे ही पास आने वाले थे "
" यार रवि के डॉक्यूमेंट सबमिट करने है "
" कंप्यूटर से तेरे पास तो स्कैनर भी है कर देगा "
मेहताब ने कहा ।
मनोज ने झूठ बोला कि मैं नही कर सकता तुम आ जाओ मैं कंप्यूटर ओपन कर दूंगा तुम कर लेना । बताओ मुझसे नहीं आता ।
मेहताब बोला - " ठीक है रवि कर लेगा "
" आओ फिर " मनोज बोला
अब तो रवि गर्दन झुकाए मेहताब के पीछे पीछे चलता रहा और मेहताब मनोज के पीछे पीछे चलता रहा
दो मिनट में ही मनोज का घर आया और मनोज मेहताब और रवि को अपने कंप्यूटर वाले रूम में ले गया और पानी की बोतल लाकर दी
" ये लो पानी पियो " मनोज बोला ।
और कंप्यूटर ऑन करके मेहताब से बोल दिया -
" लो करलो वाईफाई भी चालू है "
" रवि बैठ जल्दी फिर मुझे भी जाना है यार मम्मी इंतजार कर रही होगी "
" खाला के जाएंगी यार " मेहताब ने कहा
रवि अपने पेपर लेकर बैठ गया रवि मनोज के कमरे की साफ सफाई , सुंदरता और नए कंप्यूटर की देखरेख का दीवाना हो चला था इतनी जल्दी सब कैसे बदल गया ।
पेपर अपलोड होने में कुछ दिक्कत महसूस हुई रवि को और उसकी टाइपिंग स्पीड भी कम नजर आ रही थी ।
मेहताब रवि से बोला - " जल्दी जल्दी हाथ चला "
लेकिन पता नही जैसे ही वह पेपर सबमिट करता लेकिन हो नहीं पाता आधा घंटा ऐसे ही बीत गया आखिरकार
मनोज बोला - "तुम हटो मैं करता हूं "
और मनोज ने सिर्फ दो मिनट में उसकी बताई हुई साइट पर पेपर अपलोड कर दिए ।
यह देखकर मेहताब तो चौंक ही गया कि बोल ही बैठा -
" क्या बात है "
" तुम्हारी टाइपिंग स्पीड तो कमाल की है "
" अरे जा यार रवि तेरे पास कंप्यूटर होते साते "
" तुझसे चार पेपर अपलोड न हुए " मेहताब ने कहा
रवि शर्मिंदा हुए जा रहा था कि रवि बोला मेहताब से -
" चलो हो गए न अब "
और मनोज का शुक्रिया किया
" शुक्रिया भाई मनोज "
रवि के जाते जाते मेहताब ने एक बात कह दी
भाई बुरा मान या भला मान आज ये मनोज तेरे काम आया है
याद रखिए " वक्त सबका एक सा नही रहता "
और फिर रवि चला गया और मेहताब भी अपने घर को चल दिया ।
- गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी
- दिनांक : २९/०१/२०२४
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Alka jain
05-Feb-2024 10:49 PM
Nice one
Reply
Milind salve
05-Feb-2024 02:40 PM
Nice
Reply
Gunjan Kamal
30-Jan-2024 04:30 PM
लाजवाब प्रस्तुति
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