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लेखनी कहानी -29-Jan-2024

राष्ट्रहित

अन्न-जल जो देश है देता, उससे तुमको है प्यार नहीं। गात के अंदर दिल मुर्दा है, जहाॅं देशभक्ति का धार नहीं।

भारत -भूमि पर जन्म लिए हो, खेल-कूद कर बड़े हुए। क्या कर्तव्य ना कोई तुम्हारा? जिसकी रज में तुम खड़े हुए।

अनुपम ,अप्रतिम संस्कृति यहाॅं की , परंपरा मन को भाती है। प्राकृतिक सौंदर्य में देश है डूबा, सबका मन हर्षाती है।

जन्मे, खेले ,पले बढ़े हो, गात मिला इस मिट्टी से। इसका ऋण है तुम्हें चुकाना, विस्मित ना हो स्मृति से।

भारत- भूमि की सुंदरता में, अपने मन को रमाएंँगे‌ ज्ञान-वैभव का परचम, फिर दुनिया में लहराएंँगे।

देशप्रेम की उत्कंठा से, देशभक्ति पुष्पित होगा। तभी समूचे भारतवासी के घर, हॅंसी-खुशी पल्लवित होगा।

देश पर यदि कोई संकट आए, सर्वस्व समर्पण कर देंगे। भारत माॅं के सच्चे सपूत बन, रक्त का हम कण-कण देंगे।

देश के नाम पर लगे न धब्बा, ना कोई करतब ऐसा हो‌ गौरव इसका सदा बढ़ाएंँ, कर्म हमारा वैसा हो।

राष्ट्र की निंदा करे जो कोई, जीभ काट दे हाथ धरें। देशोन्मुख सदा करतब होवे, स्व-हित की ना बात करें।

पालन- पोषण धरा है करती, हम भी कुछ करना सीखें। इसके प्रति हम प्रेम दिखाएंँ, इसके हित मरना सीखें।

अंतस में जगे उदार भावना, सर्व-हित की सदा बात करें। देशोत्थान तभी संभव है, जब हाथ में लेकर हाथ चलें।

राष्ट्र का हित सबसे ऊपर हो, दूजे में समाज हित हो। तीजा हित हो गाॅंव गली का, अंत में चिंतन स्व-हित हो।

साधना शाही, वाराणसी

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