लेखनी कहानी -30-Jan-2024
शीर्षक - हमदर्द साथी
हम साथ साथ हमदर्द साथी जीवन के सफर में कोई ना कोई किसी न किसी का हमदर्द साथी होता है। आज हम सभी के लिए कोई ना कोई हमदर्द साथी का होना एक सामाजिक नियम सा बन चुका है। क्योंकि आजकल हम जीवन में अपने व्यस्त हो चुके है। कि हमारी आवश्यकताएं और हमारे प्रयास बहुत व्यस्त हो चुके हैं परंतु हम सुबह से शाम तक घर के बाहर लोगों से मिलते जुलते और उनसे बातों बातों में हम सभी एक दूसरे के हमदर्द साथी बन जाते हैं।
दिलीप एक अच्छे कॉलेज में पढ़ाता था और उसी काँलेज में महिला सहपाठियों भी पढ़ातीं थी। जीवन के सच में एक स्वाभाविक है कि हम जहां एक दूसरे से मानवता के साथ मिलते हैं और अधिक समय बताते हैं तो वहां एक हमदर्द साथी एक दूसरे के लिए मददगार बन ही जाते हैं।
सच दिलीप तो एक होनहार नौजवान हिंदी का प्रोफेसर था और जीवन में सभी के साथ एक समान व्यवहार रखता था और सभी लोग दिलीप की बहुत इज्जत करते थे दिलीप के कॉलेज में ही नीरजा नाम की प्रोफेसर थी जो की गणित पढ़ाती थी। बस नीरजा जीवन में अकेली थी। वह अपनी बुढ़ी अकेली मां के साथ रहती थी।
सभी टीचर्स अपनी इंटरवल के समय भोजन कक्ष में एक दूसरे के साथ भोजन कर रहे थे और सभी एक दूसरे को हंसी मजाक से छेड़ रहे थे तभी नीरज की फोन पर घंटी बजती है और दूसरी तरफ से एक अजनबी आदमी की आवाज आती है। कि हम अस्पताल से बोल रहे हैं आपकी मां शारदा जी की तबीयत बहुत खराब है और वह इस समय अस्पताल में भर्ती है आप तुरंत यहां आ जाएं। ऐसे समय में ही एक हमदर्द साथी की जरूरत होती है परंतु नीरजा बिल्कुल अकेली पड़ चुकी थी। भोजन कक्ष में सभी नीरजा की ओर देखने लगे। और नीरज के चेहरे पर चिंता के भाव थे क्योंकि जब आदमी को कोई ऐसी खबर लगती है तब उसे गलत ख्याल सबसे पहले आते है। दिलीप भी भोजन कर रहे थे उन्होंने नीरजा जी की ओर देखा कि वह कुछ चिंतित हैं। परंतु दिलीप जी एक अधेड़ उम्र के कुंवारे थे। और वो भी पुरुष काँलेज के साथ साथ कुछ हिचक और मर्यादा मन भावों में आ जाती हैं।
परंतु दिलीप जी एक व्यवहार कुशल मानवता के साथ-साथ वो भी तो अकेले थे। फिर भी दिलीप जी ने हिम्मत और साहस बटोर कर नीरजा जी के पास गए और नीरजा जी की ओर देखकर बोले मैडम बताइए क्या परेशानी है नीरजा आंखों में चिंता के भाव और हल्के आंसू भरे लहजे में बोली वो मां अस्पताल में है। तब दिलीप जी बोले चलो हम अस्पताल चलते हैं यह सुनकर नीरजा को एक हमदर्द साथी सा अनुभव हुआ।और वह खड़ी हो ते होते लड़खड़ा गई बस दिलीप जी ने हाथ पकड़ लिया और दोनों की नजरें आज मिली। बस नीरजा ने भी हाथ थाम लिया और एक-दूसरे को लगा कि सच हमें हमदर्द साथी की जरूरत होती हैं। और दिलीप जी नीरजा जी को कार में बैठा कर अस्पताल पहुंचे। वहां मालूम चला माता जी बाज़ार कुछ समान लेने गई थी और वहां उम्र के साथ बीपी कम होने के कारण गिर गई थी और गिरने के साथ चोट लग गई हाथ पैर में बस कुछ लोग यहां लाए और हमने आपको फोन नंबर माता जी के पर्स से मिला।
समय के साथ-साथ माता जी को होशआता हैं और माता जी को दिलीप और नीरजा घर ले आते हैं। और माता जी दिलीप क एक विषय में नीरजा से पूछती हैं। तब नीरजा कहती हैं हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ाते हैं। दिलीप नीरजा से कहते हैं अब मैं चलता हूं। तब माता जी के मुंह से निकलता हैं। बेटा खाना पीना खाकर जाना और घर में कौन-कौन हैं। बस माता जी विवाह हुआ नहीं अकेले हैं।
माता जी कहती हैं नीरजा भी अकेली हैं। तुम हमारे साथ ही रहो न नीरजा माँ यह आप क्या कह रही हो नीरजा बात काटते हुए मैं चाय लेकर आती हूंँ। और नीरजा रसोई में चली जाती हैं। दिलीप माता जी के पास बैठ जाते हैं। और नीरजा चाय लेकर आती हैं। तब माता जी की तबीयत फिर बिगड़ती महसूस होती हैं। हमदर्द साथी की जरूरत होती हैं। अब माता जी हिम्मत करके फिर दिलीप से कहतीं हैं बेटा मेरी नीरजा के हमदर्द साथी तुम हो।
और फिर माता जी और दिलीप नीरजा चाय पीते हैं और माता जी दिलीप के हाथ में नीरजा का हाथ दे देती हैं। और कहती। मेरे अनुभव और नजर से तुम दोनों एक-दूसरे के हमदर्द साथी के साथ जीवन भर हमदर्द साथी बन जाओ। अब नीरजा और दिलीप एक-दूसरे के हाथ पकड़ हमदर्द साथी के साथ-साथ आने वाले कल की खुशियों को महसूस करते हैं। सच ज़िंदगी में एक हमदर्द साथी की जरूरत होती हैं।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र
Gunjan Kamal
02-Feb-2024 03:53 PM
👏👌
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Mohammed urooj khan
31-Jan-2024 11:43 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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