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बहुत चिंतन की बात है ये

बहुत चिंतन की बात है ये
विधा, छंद मुक्त कविता 

बढ़ रही है विश्व में खूब आबादी
जमीन को उद्योग में लगा रहें है लोग
बहुतों को तो विकास ने ही उजाड़ा है
तभी तो आज भी गरीब बन रहें है कुछ लोग
बहुत चिंतन की बात है ये।
महत्वकांक्षी सोंच है हमारी
मंजिल का तो किसी को पता ही नही है
अनेकों ने जैसा चाहा वैसा बन भी जाता है
पर ये मंजिल का अंतिम छोर नही है
बहुत चिंतन की बात है ये।
मन की हलचल बहते हुए पानी के समान है
जरा सी ठोकर से ही बदल लेती है अपना स्थान
जीते तो सभी है इस दुनिया में
पर कोई तो बता दें कौन सुखी है आज
बहुत चिंतन की बात है ये।
जाति धर्म के झगड़े आज
बहुत है अपने वतन में भी
गैरों को दोष क्या दूं
साजिश रच रहें है वे लोग, जो है अपने
बहुत चिंतन की बात है ये।
लोग देते है नसीहत औरों को
तुम छोड़ो मत इमानो वफ़ा
पर यह इस जग की कैसी माया है
सामने तो मुंह में राम,बगल में चाकू रखते है लोग
बहुत चिंतन की बात है ये।

नूतन लाल साहू

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4 Comments

Alka jain

06-Feb-2024 11:53 AM

Nice

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Gunjan Kamal

02-Feb-2024 04:29 PM

👏👌

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Mohammed urooj khan

31-Jan-2024 11:42 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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