GUDDU MUNERI

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दान खैरात


[ खैरात ] 


सख्त अजाब समझो या सजा तुम 

वो अकेला भूख प्यास में सो गया 


एक टुकड़ा रोटी का हमसे खैरात न हुआ 

और वो जमीन ए खाक हो गया  ।।


तवायफ का नाच गाना देखा 

गायब खजाना तहखानो से हो गया 


मजा लगा लिया हमने शराब से 

खैरात का नया मयखाना हो गया ।।


फिक्र में बूढ़ी हो गई मां की आंखे 

खैरात न मिली तो घर नीलाम हो गया 


एक रूपया हमसे खैरात न हुआ 

जख्म उसका ला इलाज हो गया ।।


भूख-तंगी ने मंगवा डाली भीख हमसे 

न जाने कब शाम कब सवेरा हो गया 


अपनो से दूर दर दर खाई ठोकरें

ना जाने किस राह इंतकाल हो गया ।।


बीमार को खैरात में शिफा दे देना 

शिफा मिली समझो खैरात हो गया 


जरूरतमंद की जायज जरूरत देना 

काम बन जाए समझो खैरात हो गया ।।


वो जाती थी सर ए राह में लकड़ी बिनने

कमीज का टुकड़ा फटा हाल हो गया 


एक कपड़ा भी हमसे खैरात न हुआ 

तन बदन उसका नजर ए आम हो गया ।।


दिलो की इज्जत ओ हया शर्मिंदगी ने रोका 

न दे सका कोई खैरात मुझे तो फाका हो गया 


हमने भी थामे रखी इज्जत आबरू 

भले हम जैसा खत्म इंसान हो गया ।।


      - गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी 

      - दिनांक : ३१/०१/२०२४


विषय : दान (खैरात ) 

आज की प्रतियोगिता हेतु 












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8 Comments

Milind salve

05-Feb-2024 12:15 PM

Nice

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Gunjan Kamal

02-Feb-2024 04:25 PM

👏👌

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Varsha_Upadhyay

01-Feb-2024 12:30 PM

Nice

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