अगर मगर




मुक्तक _ अगर मगर।

मेरी नजर तुम्हारी तरफ मगर अपनी नजर इधर उधर क्यों करते हो।
मैंने तो कह दिया तुमसे प्यार है मगर तुम अगर मगर क्यों करते हो।
एक अरसा गुजर गया तुम्हारे इंकार को इकरार में बदल नही पाया मैं।
रहना है तो मेरे दिल में रहो तुम इधर उधर गुजर बसर क्यों करते हो।

श्याम कुंवर भारती




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7 Comments

Reyaan

07-Feb-2024 09:46 PM

V nice

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Alka jain

06-Feb-2024 11:47 AM

Nice

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Gunjan Kamal

02-Feb-2024 04:23 PM

👏👌

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