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वह राम कहां से लाऊं मैं-02-Feb-2024

वह राम कहां से लाऊं मैं 


शबरी    के   जूठे   बेरों   से

जो तनिक नहीं भी बैर किया

सब  ऊंच - नीच  के भेदों से 

जो  ना  अपना ना गैर किया

उस  पुरषोत्तम  श्री  रामचन्द्र

को  आज  कहां  से लाऊं मैं

अब  लखन जानकी संग राम

को  देख  कहीं  ना  पाऊं  मैं। 


                     उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                     को आज कहां से लाऊं मैं। 


नदियों  में  नाव  चलाकर जो

भरता  था  अपना  पेट  भला

हां  मित्र  बना कर उसको भी 

भाई   के  जैसा  समझ  चला 

सबको   गले    लगाने    वाले

ना   आज  राम  को  पाऊं  मैं,

राजनीति   के   राम   राम  में

वो   राम   कहां  से  लाऊं  मैं। 


                    उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                    को आज कहां से लाऊं मैं। 


राज  भोग का मोह त्याग जो

वन  जाना स्वीकार किया था

पितृ-वचन को शीर्ष चढ़ा कर

सत्ता  सुख इनकार किया था 

राम  नाम  पर  लूट  मचा  है

यदि  मंदिर  संसद  जाऊं  मैं,

रामराज  की   परिभाषा  को

अब  आज  कहीं ना पाऊं मैं। 


                 उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                 को आज कहां से लाऊं मैं। 


जय  सिया  राम का अभिवादन

जय   श्री  राम  में  बदल   गया

करुण  विनम्र  स्वभाव  राम का 

अब  उग्र  भाव  में  सदल  गया

आह   वेदना   करुण  रुदन  में 

अब  किसको  राम  बुलाऊं  मैं,

राम नाम पर ज्वलित अग्नि को

अब   कैसे   शान्त   कराऊं  मैं। 


                 उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                 को आज कहां से लाऊं मैं। 


मरा  मरा  कहने   वाला  भी

नर  क्रूर, संत  बन  जाता था 

भारी  पत्थर   भी  राम  नाम

से, तैर  नीर  पर  जाता   था

आज  संत भी क्रूर बना क्यों?

मस्तक  पर  राम  दिखाऊं मैं,

पीड़ित  है  नर  राम  नाम  से

किसको    राम   बुलाऊं   मैं। 


                  उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                  को आज कहां से लाऊं मैं। 


ढाल  बना  कर रामचन्द्र को

हर   कोई   रोटी   सेंक  रहा

जाति  धर्म  का ओढ़े चादर

है   मानवता   को  रेत  रहा 

राक्षस  जैसे  इन  दैत्यों को 

कैसे    इंसान    बनाऊं   मैं,

इंसान कहूं कि कहूं भेड़िया

इनको  समझ  ना  पाऊं मैं। 


                  उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                  को आज कहां से लाऊं मैं। 


आज   बना  है  संसद  अड्डा

राजनीति  के  हथियारों  का

ब्यभिचारों  का  हत्यारों  का 

उकसाने  में   ललकारों  का

शान्ति भाव का राम नाम है

कैसे   इनको   समझाऊं  मैं,

राम  नाम  ही जगत सत्य है

कैसे   इनको   बतलाऊं  मैं। 


                  उस पुरषोत्तम श्री रामचन्द्र

                  को आज कहां से लाऊं मैं। 



           रचनाकार

     रामबृक्ष बहादुरपुरी

अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश 





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4 Comments

Sushi saxena

14-Feb-2024 05:44 PM

V nice

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Gunjan Kamal

03-Feb-2024 09:14 PM

👏👌

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Punam verma

03-Feb-2024 09:06 AM

Nice👍

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